विदेशी विद्वान्/७―अमेरिका के सर्वश्रेष्ठ समाचार-पत्र-सञ्चालक विलियम हार्स्ट

विदेशी विद्वान
महावीर प्रसाद द्विवेदी

इलाहाबाद: इंडियन प्रेस लिमिटेड, पृष्ठ ७० से – ७७ तक

 
७-अमेरिका के सर्वश्रेष्ठ समाचार-पत्र-सञ्चालक विलियम हार्स्ट

अमेरिका अखबारों का घर है। सबसे अधिक अखबार वहीं निकलते हैं। वहाँ अख़बारों का प्रभाव भी बहुत बढ़ा- चढ़ा है। अखबार ही प्रजा के सच्चे नेता समझे जाते हैं। इस समय अमेरिका में जितने अखबारवाले हैं उन सबके शिरोमणि, सबसे अधिक धनवान, प्रभावशाली, योग्य और कार्यकुशल विलियम हार्स्ट हैं। किसी-किसी का कथन है कि केवल अमेरिका ही नहीं, किन्तु सारे संसार मे ऐसा चलता-पुर्जा समाचार-पत्र-सञ्चालक दूसरा न होगा।

जन्म और शिक्षा

हार्स्ट साहब का जन्म १८६४ ईसवी मे केलीफोरनिया की राजधानी सानफ्रांसिस्को नगर में हुआ था। आपके पिता सिनेटर हार्स्ट केलीफोरनिया के प्रसिद्ध करोड़पति थे। वे कई खानों के मालिक थे। खानें खुदवाकर खनिज पदार्थ निका- लना और उनका व्यापार करना ही उनका पेशा था। इसी की बदौलत वे इतने सम्पत्तिशाली हुए थे। शैशवावस्था के व्यतीत होने पर उन्होंने अपने पुत्र हार्स्ट को हारवर्ड-विश्व विद्यालय भेज दिया। वहीं बालक हार्स्ट की शिक्षा प्रारम्भ हुई। कई साल तक पढ़ने के बाद आप बिना कोई पदवी प्राप्त किये वहाँ से लौट आये और घर में रहने लगे।

युवावस्था

अब आपका समय व्यर्थ गप्पाष्टक और थियेटरबाज़ी में नष्ट होने लगा। इसी समय थियेटर में तमाशा करनेवाली एक परमा सुन्दरी पर आप आसक्त हो गये। आपने उसके साथ विवाह करना चाहा। पर आपके कुटुम्बियों ने इसे अनुचित समझकर इस विवाह को न होने दिया। इस पर हार्स्ट साहब ने प्रसिद्ध अँगरेज़ी कवि बाइरन के चरित्र का अनुकरण किया। कई वर्ष बाद एक अन्य स्त्री के साथ विवाह होने पर आपकी यह आवारागर्दी जाती रही। अथवा यों कहिए कि आपकी काया पलट गई।

अखबारी दुनिया में प्रवेश

आवारागर्दी के ज़माने में एक दिन आपकी इच्छा हुई कि हम भी कोई समाचार-पत्र निकालें। इस इच्छा को कार्य मे परिणत करने के लिए आपने अपने पिता से सहायता मॉगी। सुनते ही वृद्ध पिता को बड़ा आश्चर्य हुआ। उन्होंने इस काम मे धन नष्ट करना उचित न समझा; इसलिए अपने पुत्र से इस इच्छा को त्याग देने के लिए कहा। पर हार्स्ट ने न माना। जैसे-तैसे पिता ने सहायता देना स्वीकार किया। आप सानफ्रांसिस्को एग्जामिनर ( San Fransisco Examiner ) नास का समाचारपत्र निकालने लगे। जिन लोगों ने इसे देखा है उनका कथन है कि निकलने के साथ ही इस पत्र ने अमेरिका के पश्चिमी किनारेवाले देशों को हिला दिया। सारे देश मे इसकी धूम मच गई। इसके लेखों को पढ़कर दुष्ट, दुराचारी, अत्याचारी और पापियों के हृदय थर-थर कॉपने लगे। आपकी निर्भीक नीति ने जादू का सा असर किया। जिन 'चोरों की डाढ़ी में तिनका' था वे मैदान छोड़-छोड़कर भागने लगे। पापियों ने पराजय स्वीकार किया। केलीफ़ोरनिया के सच्चरित्र सज्जन आपकी क़लई खोलने और भण्डा फोड़नेवाली नीति की शतमुख से प्रशंसा करने लगे। कुछ दिनों में इस पत्र की ग्राहक-संख्या इतनी बढ़ी कि इससे खूब लाभ होने लगा।

कार्य्याविस्तार

सानफ्रांसिस्को में आपने जैसी सफलता प्राप्त की उससे आपका उत्साह ख़ूब बढ़ गया। १८९४ में आपने अमेरिका के दूसरे छोर न्यूयार्क में भी एक अख़बार निकालने का निश्चय किया। उस समय न्यूयार्क में "न्यूयार्क वर्ल्ड" के प्रसिद्ध सम्पादक पलिटज़र साहव की तूती बोलती थी। पर हार्स्ट के समान प्रतिभाशाली और करोड़पति के मुक़ाबले में ठहरना हर एक का काम न था। आपने पलिटज़र के सब योग्यतम कार्यकर्ता अपनी ओर कर लिये। पलिटज़र के तनख़्वाह बढ़ाने पर वे फिर उधर चले गये। इस पर आप इतना अधिक वेतन देने को तैयार हुए जितना पलिटज़र के ख़याल मे भी नहीं आ सकता था। अन्त मे आपकी जीत हुई। थोड़े ही दिनों मे आपका पत्र न्यूयार्क जरनल ( New York Journal ) अमेरिका के सब अख़बारों से बाज़ी मार ले गया। उसकी ग्राहक-संख्या सबसे अधिक हो गई और वह औवल दर्जे का अख़बार समझा जाने लगा।

हार्स्ट साहब के अखबारों की वर्तमान दशा

हार्स्ट साहब इस समय जुदे-जुदे नौ समाचारपत्रों और तीन मासिक-पुस्तकों के स्वामी और सञ्चालक हैं। ये बारहों पत्र अमेरिका के पाँच बडे-बड़े नगरों अर्थात् बोस्टन, न्यूयार्क, शिकागो, सानफ्रांसिस्को और लास ऐंगलीज़ से प्रकाशित होते हैं। इन पत्रो की ग्राहक संख्या बीस लाख से कुछ ऊपर है और दिन पर दिन बढ़ती जाती है। मतलब यह कि हार्स्ट साहब प्रति दिन बीस लाख आदमियों से बातचीत करते हैं। कुछ ठिकाना है! इस संसार में किसी वक्ता को इतने अधिक श्रोता शायद ही कभी मिले होगे।

हास्र्ट साहब ने अपने अख़बारी कारोबार में कोई चार करोड़ रुपये अपनी गाँठ के लगा रक्खे हैं। पूर्वोक्त वारहों पत्रों के प्रकाशित करने में हर साल आप कई करोड़ रुपये खर्च करते हैं। इस काम में प्रतिदिन एक लाख बीस हज़ार रुपये आपके घर से जाते हैं !!! पत्रों की बीस लाख कापियाँ तैयार करने में प्रतिदिन बारह हज़ार मन कागज़ खर्च होता है। इस समय आपके अधीन काम करनेवालो की संख्या उन्नीस हजार के करीब है। इनमे से चार हज़ार तो दफ्तरों में काम करनेवाले स्थायी कर्मचारी हैं और कोई पन्द्रह हज़ार संवाद-दाता। आपने अपने कारोबार में बेहद उन्नति की है। इसका अनुमान केवल इस बात से किया जा सकता है कि जिस न्यूयार्क जरनल को आपने साढ़े चार लाख रुपये मे खरीदा था, इस समय उसकी लागत करीब ढाई करोड़ रुपये के है।

उद्देश और कार्य

हार्स्ट साहव के अखबारों को अमेरिका के साधारण तथा नीची श्रेणी के लोग बहुत पसन्द करते हैं। क्योंकि उनमें उन्हीं के मतलब की बातें अर्थात् किस्से, चुटकुले, पञ्च, रहस्य-उद्घाटन और चौंका देनेवाली खबरे अधिक रहती हैं। इसके सिवा सर्वसाधारण की दशा सुधारना, उन पर अत्या- चार न होने देना, गरीबों को सतानेवालों की ख़बर लेना और अदालत द्वारा उतको दण्ड दिलवाना आपके पत्रों का मुख्य उद्देश है। इसी कारण लक्ष लक्ष दरिद्र नर-नारी आपके पत्रों को खुशी से खरीदते, पढ़ते, उनसे मन बहलाते और लाम उठाते हैं। इन पत्रों का उन पर प्रभाव भी खूब पड़ता है। जैसा हार्ट साहब कहते हैं, पढ़नेवाले वैसा ही करते हैं । आपके पत्रों द्वारा अमेरिकन लोगों ने किस कदर और कहाँ तक राजनैतिक, सामाजिक, पारिवारिक, नैतिक और आर्थिक लाभ उठाया है, यदि इसका व्योरेवार वृत्तान्त लिखा जाय तो एक ग्रन्थ तैयार हो सकता है। न मालूम कितने देश-द्रोही, समाज-द्रोही, दुष्ट और पापी जनों ने आपके पत्रों की बदौलत अपने कुकर्मों का कुफल चखा है। न मालूम कितने बार आपके पत्रों ने करोड़ों रुपयों की हानि से गवर्नमेंट और प्रजा को बचाया है। इसी तरह इनकी कृपा से न मालूम कितने निरपराधियों ने अकाल-मृत्यु के पञ्जे और जेल की यातना से मुक्ति पाई है। धन्य मिस्टर हार्स्ट ! धन्य तुम्हारी न्याय-प्रियता!

हार्स्ट साहब के कर्मचारी

अमेरिका में इस समय जो सबसे अधिक योग्य, विद्वान, प्रतिभाशाली और कार्यदक्ष पत्र-सम्पादक हैं उनमें से अधि- कांश आपके अधीन काम करते हैं। आपके पत्रों की उन्नति का यह भी एक कारण है। आप उन्हे तनख्वाह भी अच्छी देते हैं। इतनी अधिक तनख्वाह पानेवाले सम्पादक केवल अमेरिका ही नही, किन्तु किसी देश मे न होगे। आपका सबसे अधिक वेतन पानेवाला कर्मचारी डेढ़ लाख रुपये वार्षिक पाता है ! अर्थात् अमेरिका के प्रेसीडेंट की तनख्वाह के बरा- बर ! दूसरा आदमी एक लाख बीस हज़ार रुपये पाता है; तीसरा नव्वे हज़ार। तीन सहायक पछत्तर-पछत्तर हज़ार रुपये वार्षिक पाते हैं। यहाँ पर यह लिखे बिना नहीं रहा जाता कि हार्स्ट साहब के अधीन काम करनेवाला एक सह- कारी सम्पादक जितनी तनख्वाह ( पछत्तर हज़ार ) पाता है उतनी ही हमारी जन्मभूमि भारतवर्ष के कर्ता, धर्ता और विधाता भारतसचिव भी पाते हैं। अर्थात् तनख्वाह के लिहाज़ से इंगलेंड का एक राजमन्त्री और अमेरिका का एक सहकारी सम्पादक एक हैसियत रखता है। इससे पाठक अनुमान कर सकते हैं कि हमारे देश के पत्रसम्पादकों की तरह अमेरिका के सम्पादक दीन, हीन और दरिद्र नहीं ।

सूरत, शकल और स्वभाव आदि

हार्स्ट साहब खूब लम्बे-चौड़े आदमी हैं। लम्बाई में वे छः फीट दो इञ्च हैं। शरीर भारी होने पर भी सुदृढ़ और गठीला है। ज़ाहिरा पहलवान से जान पड़ते हैं।

हार्स्ट साहब करोड़पति हैं। अखबारी सम्पत्ति के सिवा कोई दस लाख एकड़ भूमि के भी वे मालिक हैं। पर वे रुपये की परवा नहीं करते। उसे वे पानी की तरह बहाते हैं। अपने सुख के लिए नहीं, किन्तु सात करोड़ अमेरिकनों के उपकार के लिए। कमलापति होने पर भी उनमें अभि- मान छू तक नहीं गया। बे बड़े ही सीधे-सादे, श्रमसहिष्णु, दृढ़-सङ्कल्प, शान्त, दयालु और न्यायप्रिय हैं। वे तम्बाकू या मदिरा कभी नहीं पीते। घुड़दौड़ या और किसी खेल का उन्हे शौक नहीं। नाच, गान, सैर, शिकार से सदा दूर रहते हैं। धनवानों से कम मिलते हैं। साधारण मनुष्य ही उनके मित्र हैं। एक मामूली मकान में रहते हैं और अपने काम से काम रखते हैं।

क्या हार्स्ट साहब के चरित्र से हम लोग कुछ शिक्षा नहीं प्राप्त कर सकते ?

[ फरवरी १९०९


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