विकिस्रोत:सप्ताह की पुस्तक/४३
आदर्श हिंदू २ मेहता लज्जाराम शर्मा द्वारा रचित उपन्यास है जिसका प्रकाशन काशी नागरी-प्रचारिणी सभा की ओर से प्रयाग के इंडियन प्रेस, लिमिटेड द्वारा १९२८ ई॰ में किया गया था।
"इक्कीसवें प्रकरण के अंत में उस अपरिचित यात्री के साथ पंडित प्रियानाथ ने जाकर देखा। उन्होंने अपनी आँखों से देख लिया, खूब निश्चय करके जान लिया और अच्छी तरह जिरह के सवाल करके निर्णय कर लिया कि उस नादिया का पाचवाँ पैर जो कंधे के पास लटक रहा था वह सरासर बनावटी था। पीछे से जोड़ा गया था। जो असाधु साधु बन- कर, नंदिकेश्वर का पुजापा लेता फिरता था वह वास्तव में हिंदू नहीं था। जब पंडितजी ने खूब खोद खोदकर उससे पूछा तब उसने साफ साफ कह दिया कि "महाराज, ये तो पेटभरौती के धंदे हैं।" इन्होंने इस बात के लिये जो जो परीक्षाएँ की उनमें एक यह भी थी कि जब उस नादिया के और और अंगों में सुई चुभो दी गई तब वह लात फटकारकर सिर हिलाकर मारने को दौड़ा किंतु जब पाँचवें पैर की पारी आई तब चुप।..."(पूरा पढ़ें)