विकिस्रोत:सप्ताह की पुस्तक/२१
गोदान प्रेमचंद रचित उपन्यास है जिसका प्रकाशन १९३६ ई॰ में किया गया था।
"होरीराम ने दोनों बैलों को सानी-पानी देकर अपनी स्त्री धनिया से कहा—गोबर को ऊख गोड़ने भेज देना। मैं न जाने कब लौटूँ। ज़रा मेरी लाठी दे दे।
धनिया के दोनों हाथ गोबर से भरे थे। उपले पाथकर आयी थी। बोली—अरे, कुछ रस-पानी तो कर लो। ऐसी जल्दी क्या है?
होरी ने अपने झुरिर्यों से भरे हुए माथे को सिकोड़कर कहा—तुझे रस-पानी की पड़ी है, मुझे यह चिन्ता है कि अबेर हो गयी तो मालिक से भेंट न होगी। असनान-पूजा करने लगेंगे, तो घंटों बैठे बीत जायगा।..."(पूरा पढ़ें)