विकिस्रोत:सप्ताह की पुस्तक/११
चंद्रकांता संतति, भाग-४ देवकीनन्दन खत्री द्वारा रचित तिलिस्मी उपन्यास है जिसका प्रकाशन दिल्ली के भारती भाषा प्रकाशन द्वारा किया गया था।
"हम लिख आये हैं कि कुँअर इन्द्रजीतसिंह ने तिलिस्मी किताब को पढ़कर समझने का भेद आनन्दसिंह को बताया और इतने ही में मन्दिर के पीछे की तरफ से चिल्लाने की आवाज आई। दोनों भाइयों का ध्यान एकदम उस तरफ चला गया और फिर यह आवाज सुनाई पड़ी, "अच्छा-अच्छा, तू मेरा सिर काट ले, मैं भी यही चाहती हूँ कि अपनी जिन्दगी में इन्द्रजीतसिंह और आनन्दसिंह को दुःखी न देखूँ। हाय इन्द्रजीतसिंह, अफसोस, इस समय तुम्हें मेरी खबर कुछ भी न होगी!" इस आवाज को सुनकर इन्द्रजीतसिंह बेचैन और बेताब हो गये और आनन्दसिंह से यह कहते हुए कि 'कमलिनी की आवाज मालूम पड़ती है' मन्दिर के पीछे की तरफ लपके। आनन्दसिंह भी उनके पीछे-पीछे चले गये।..."(पूरा पढ़ें)