विकिस्रोत:वापसी प्रस्ताव

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जोगप्रदीपिका सम्पादन

मैने जोगप्रदीपिका नामक योग सम्बन्धी मध्यकालीन हिन्दी ग्रन्थ को हिन्दी विकिस्रोत पर डाला था। नीलम जी ने उसे हटा दिया। मैने उनसे वार्ता की। मैने उनसे जानने की कोशिश की कि क्या किसी हिन्दी पुस्तक को यहाँ केवल इमेज फॉर्मट में ही डाला जा सकता है? क्या उसका यूनिकोडित रूप उपलब्ध हो तो उसे यहाँ नहीं रख सकते? नीलम जी ऐसा ही सोचती हैं। मैने उनसे इस सम्बन्ध में नीति क्या है, यह बताने का आग्रह किया था। किन्तु डेढ़ महीना हो गए, वे उत्तर नहीं दे रहीं हैं।

यदि मैने बिना इमेज के, सीधे यूनिकोड में डालकर किसी नीति का उल्लंघन न किया हो तो नेवेदन है कि उस पुस्तक को पुनः स्थापित किया जाय। --अनुनाद सिंह (वार्ता) ०७:३०, १२ दिसम्बर २०२० (UTC)[उत्तर दें]

@अनुनाद सिंह: जी, नमस्ते। आपके द्वारा बनाए गए अनुभाग जोगप्रदीपिका को हटाना में पूछे गए प्रश्न का उत्तर संक्षेप में २६ अक्टूबर को दे दिया गया था, जिसमें यह स्पष्ट रूप से कहा गया था कि-"विकिस्रोत पर बिना स्कैन सीधे यूनिकोड में सामग्री नहीं रखी जा सकती।" शायद वह संदेश आपके पास पहुँचा ही नहीं है।
  • आप जानना चाहते हैं कि "क्या किसी हिन्दी पुस्तक को यहाँ केवल इमेज फॉर्मट में ही डाला जा सकता है? क्या उसका यूनिकोडित रूप उपलब्ध हो तो उसे यहाँ नहीं रख सकते?"
  • उत्तर-नहीं। ऐसा नहीं है कि-"नीलम जी ऐसा ही सोचती हैं।" बल्कि यही तथ्य और सत्य है।
  • इस "यूनिकोडित रूप" का उपयोग विकिपुस्तक पर स्वतंत्र पुस्तक बनाने में किया जा सकता है। इस परियोजना पर मूल पुस्तक को इमेज फ़ॉर्मेट में लाकर उसे स्कैन किया जाता है तब उसमें वर्तनी सुधार का कार्य किया जाता है। आपका एक बिना स्कैन का पाठ हिंदी विकिस्रोत के स्कैन प्रतिशत को ९९.९५ से गिराकर ८५ के आस-पास कर देगा, जिससे परियोजना की गुणवत्ता में बढ़ोतरी तो नहीं ही होगी।
  • अभी तक पृष्ठ हटाने की नीति बनी ही नहीं थी इसलिए आपको उससे अवगत भी नहीं करा पाई। अब ऐसा नहीं है इसलिए पृष्ठ हटाने की नीति जानने के लिए यहाँ क्लिक करें।
  • यदि अब भी आपको संतोषजनक उत्तर न मिला हो तो अन्य सदस्यों के उत्तर की प्रतीक्षा करें। यदि आप सकारात्मक संपादन करना चाहें तो सहायता के लिए यह पृष्ठ देखें। संपादन कार्य में किसी प्रकार की सहायता के लिए आप मेरी वार्ता या चौपाल पर अपना संदेश लिख सकते हैं। शुभकामनाओं सहित धन्यवाद। --नीलम (वार्ता) ०९:०९, १२ दिसम्बर २०२० (UTC)[उत्तर दें]
नीलम जी, आपने उत्तर दिया, मैं धन्य हो गया। लेकिन आज आपको उत्तर नहीं देना था। आपको एक महीने से मौका था, लेकिन आपने उसे गंवा दिया। खैर जब आपने अपने विचार लिख दिए हैं तो मैं भी इस पर कुछ लिख दूँ। पहली बात तो ये कि आप यह कह रहीं हैं कि "अभी तक पृष्ठ हटाने की नीति बनी ही नहीं थी इसलिए आपको उससे अवगत भी नहीं करा पाई" -- जिसका अर्थ यह है कि आपने नियम के न रहते हुए भी यह पृष्ठ हटाया। इतना ही नहीं, मुझे गुमराह करतीं रहीं कि यहाँ देखो, वहाँ देखो। जब पूछा गया कि आप 'धारा' विशेष की संख्या बताएँ , तो आपको उत्तर देते नहीं बना। अब लगे हाथ बता दीजिए कि दुनिया का कौन सा कानून भूतकाल से लागू हुआ था?दूसरी बात यह है कि विकिस्रोत का कान्सेप्ट पुरानी पुस्तकों का डिजिटलीकरण है, यह कैसे किया जाता है - यह महत्वपूर्ण नहीं है। स्कैन प्रतिशत गिरने से क्या घाटा हो जाएगा। हमे एक महान पुस्तक डिजिटल रूप में मिल रही है, उसका महत्व तो समझने की कोशिश कीजिए। नीलम जी, विकिपुस्तक पुरानी पुस्तकों को डिजिटल रूप देने के लिए नहीं है, वह 'नयी पुस्तकें' लिखने के लिए है। जरा एक बार इसे भी स्पष्ट कर लीजिए।
नीलम जी, अब आप कृपया उत्तर न दें, यही निवेदन करूँगा। दूसरे प्रबन्धकगण इस सम्बन्ध में नीति स्पष्ट करें तो विकिस्रोत का कल्याण हो।--अनुनाद सिंह (वार्ता) ११:४१, १२ दिसम्बर २०२० (UTC)[उत्तर दें]
आदरणीय @अनुनाद सिंह: जी नमस्ते। नीति-नियम तो पहले से विद्यमान हैं, बस सवाल उनकी स्पष्टता और व्याख्या का है। अगर किसी रचना का स्रोत उपलब्ध नहीं है तो विकिस्रोत पर उनकी प्रासंगिकता संदिग्ध है। रचना के स्रोत और उसकी मुद्राधिकार स्थिति से अवगत हुए बिना इस परियोजना पर उसका होना अप्रासंगिक है। विकिस्रोत की मूल संकल्पना स्रोत सामग्री को देखकर उसके प्रारूप के अनुसार प्रूफरीड करने की है, न कि कॉपी-पेस्ट पद्धति से सामग्री संकलन की। यूनीकोड में तो पहले से ही हिंदीसमय, कविताकोश और गद्यकोश आदि स्रोतहीन/बिना स्कैन सामग्री संकलित कर रहे हैं। पुराने विकिस्रोत पर पन्ना हटाने की नीति के कई कारणों में 'not appropriate here, Nonsense/gibberish' आदि कारण भी दिए जाते हैं। जब वहाँ अनिरुद्ध जी के साथ हमें प्रबंधकीय दायित्व सौंपा गया था तो सबसे पहले हमने कॉपी-पेस्ट पद्धति से संकलित बिना स्कैन के स्रोतहीन पन्ने हटाए और स्कैन के साथ ही पुस्तकों को प्रूफरीड करने की नीति पर चले। यही कारण है कि वैश्विक स्तर पर हिंदी का स्कैन प्रतिशत फिलहाल ९९.९५% के साथ दूसरे स्थान पर है (जो कि बहुत जल्द पहले स्थान पर पहुँच जाएगा) और भारतीय भाषाओं में पहले स्थान पर है। आज नहीं तो कल सभी भाषाओं को बिना स्कैन पन्ने हटाने (पाठ सामग्री संबंधी) ही होंगे वरना गुणवत्ता और प्रामाणिकता दोनों ही प्रभावित होगी ('स्कैन प्रतिशत गिरने का यही घाटा है')। आप पहले वांछित पुस्तक की स्रोत सामग्री को पहले कॉमन्स पर उचित कॉपीराइट लाइसेंस के साथ अपलोड कीजिए, उसके बाद यहाँ उसकी विषयसूची बनाकर प्रूफरीड किया जाएगा। इस काम में आपका पूरा साथ दिया जाएगा। कोई भी रचना कितनी भी महान क्यों न हो उसकी मुद्राधिकार स्थिति से अवगत हुए बिना और स्रोत स्कैन के बिना विकिस्रोत पर संकलन अनुचित है, इसीलिए किसी भी स्थिति में उसे यहाँ नहीं रखा जाएगा। मैंने 'वापसी प्रस्ताव' के संदर्भ में ही आपको उत्तर देने की कोशिश की है। नीति-नियम से संबंधित वार्तालाप आप संबंधित सदस्य से यथावत जारी रख सकते हैं। वैसे भी जब दो समझदार लोग आपस में बात कर रहे हों तो बिना बुलाए तीसरे व्यक्ति को हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। बाकी तो अनुनाद जी, नियम-कानून का जितना लिहाज आप करते हैं उससे ज्यादा मैं भी नहीं करता। कुछ मामलों में विकि-सहजबोध/कॉमनसेंस से भी/ही काम चला लेना चाहिए। पृष्ठ हटाने की नीति में भी 'अन्य कारण' इसीलिए दिया जाता है। सादर। --अजीत कुमार तिवारी (वार्ता) १३:४३, १३ दिसम्बर २०२० (UTC)[उत्तर दें]
सम्माननीय @अजीत कुमार तिवारी: जी, नमस्ते। हिन्दी विकिस्रोत के अप्रत्यासित विकास से मैं भी गदगद हूँ तथा इसके और पुष्पित-पल्लवित होने की कामना करता हूँ। तिवारी जी, आपने मुद्राधिकार सम्बन्धी जो बातें कहीं हैं उनका अनादर करने का कोई प्रश्न ही नहीं उठता। शायद आपका संकेत यह है कि बिना स्रोत (स्कैनरहित) सामग्री होने से उसके कॉपीराइट की स्थिति का निर्धारण सम्भव नहीं है, इसलिए बिना स्रोत की सामग्री नहीं रखी जानी चाहिए। मुझे लगता है कि यह बात अंग्रेजी विकिस्रोत की नीति से मेल नहीं खाती। निवेदन है कि इस सम्बन्ध में यह देखने का कष्ट करें। इसमें भी आपका ध्यान विशेषरूप से इन वाक्यों की तरफ आकृष्ट करना चाहूँगा-
Ideally all works on Wikisource will eventually have scans, replacing the works already present that do not. However, it is still OK to add proofread texts from other sources.
Sites such as Project Gutenberg host lots of texts that can be copied and pasted directly to Wikisource.
ये तो गुटेनबर्ग से बिना स्रोत की सामग्री को कॉपी करने को प्रोत्साहित करते हुए दिख रहे हैं! रही बात कॉपीराइट की। यह बात तो शायद सन्देह से परे है कि यह एक सुज्ञात पुस्तक है जो कई सौ वर्ष पुरानी है। इस पर अंग्रेजी विकी (और हिन्दी विकि) पर लेख हैं। मुझे अभी देखना है कि पुरानी पुस्तकों के सम्बन्ध में कॉपीराइट नीति क्या है। मैने अभी जो कुछ समझा है वह यह है कि ऐसी 'पुस्तकों' पर कॉपीराइट लागू ही नहीं होगा क्योंकि किसी ने एक या कुछ पाण्डुलिपियों से पढ़कर उसकी सामग्री को प्रिन्ट कर दिया या डिजिटल रूप में डाल दिया तो पाण्डुलिपि की सामग्री पर उसका कॉपीराइट नहीं हो गया। --अनुनाद सिंह (वार्ता) ०५:३८, १५ दिसम्बर २०२० (UTC)[उत्तर दें]
@अनुनाद सिंह: जी, प्रोजेक्ट गुटेनबर्ग की आरंभिक संकल्पना से ही कमोबेश विकिस्रोत की नींव पड़ी है। पहली बात तो यह कि, जिन दो पंक्तियों को आपने यहाँ कॉपी-पेस्ट किया है उनमें भी यही लिखा है कि "However, it is still OK to add 'proofread' text from other 'sources'." इसका मतलब यह है कि प्रोजेक्ट गुटेनबर्ग पर स्रोत देकर कोई पाठ प्रूफरीड किया हुआ हो तो उसे यहाँ (अंग्रेजी विकिस्रोत पर) जोड़ा जा सकता है। विकिस्रोत पर 'स्रोत' और 'प्रूफरीड' होना ही रचना की गुणवत्ता और प्रामाणिकता का आधार है। अंग्रेजी विकिस्रोत ने अपनी परियोजना पर गुटेनबर्ग से सामग्री कॉपी-पेस्ट करने की सलाह भले ही दे दी हो लेकिन सभी परियोजनाएँ उसे मान लें यह जरूरी नहीं। क्या आप बता सकते हैं कि हिंदी में/की कितनी सामग्री गुटेनबर्ग पर उपलब्ध है? हमें यह बात ध्यान रखनी चाहिए कि विकिस्रोत के मामले में कम से कम अंग्रेजी की स्थिति (जिनका स्कैन प्रतिशत ५८% से भी कम है) आदर्श और अनुकरणीय नहीं है। इस दृष्टि से फ्रेंच विकिस्रोत (स्कैन प्रतिशत लगभग ९८%) ही हमारे लिए अनुकरणीय है। दूसरी बात, कॉपीराइट आपके या मेरे मानने से तय नहीं होता। पांडुलिपि कितनी भी पुरानी क्यों न हो उसका कोई स्रोत तो होगा ही। प्रकाशन के समय उससे संबंधित सारी जानकारी दी ही जाती है/जानी चाहिए। मध्यकाल क्या यहाँ तो आदिकाल का पाठ भी पूरी कॉपीराइट सूचना के साथ उपलब्ध है। रुचि हो तो आइए, साथ में करिए प्रूफरीड। अगर आपकी "जोगप्रदीप" में ही रुचि है तो कॉपी-पेस्ट पर अड़े रहने की बजाय रचना का स्रोत खोजने का प्रयास करिए। धन्यवाद। --अजीत कुमार तिवारी (वार्ता) ०६:४७, १५ दिसम्बर २०२० (UTC)[उत्तर दें]
सम्माननीय @अजीत कुमार तिवारी: जी, नीति के बारे में मैं जहां तक समझ पाया हूँ वह यह है कि अंग्रेजी विकि-परियोजनाओं की नीतियाँ ही मोटे तौर पर अन्य परियोजनाओं में चलतीं हैं। यह बात हिन्दी विकि के लिए कुछ ज्यादा ही सही है। ऐसे में यह पूछना कि "हिंदी में/की कितनी सामग्री गुटेनबर्ग पर उपलब्ध है,?तर्कसंगत नहीं है। उन्होने तो गुटेनबर्ग का नाम एक उदाहरण के तौर पर दिया है। गुटनबर्ग आदि पर हिन्दी सामग्री कम है इसीलिए हमें अधिक लचीला होना चाहिए, न कि जरूरत से अधिक सख्त। उनकी तो स्पष्ट घोषणा है कि 'बिना स्कैन के भी सामग्री डाली जा सकती है' । हम क्यों कह रहे हैं कि बिना स्कैन के सामग्री ही डाली नहीं जा सकती? आप भी 'प्रूफरीडिंग' या अन्य शर्तें डाल सकते हैं। तिवारी जी, मैं जानता हूँ कि आपका भाषाज्ञान इतना कम नहीं है कि आपको इस मामले में 'अड़े' शब्द का प्रयोग करना पड़े। मैं यह भी जानता हूँ कि इस विकिस्रोत पर 'शीघ्र हटाने' के लिए जो ८ बिन्दु बताए गए हैं उनमें 'नाद' ही गायब है। जी हाँ, इसमें यह ही नहीं लिखा है कि केवल 'हिन्दी सामग्री ही रखी जा सकती है'। कल कोई किसी फ्रेंच पुस्तक को यहाँ रखेगा तो क्या आप अपनी इस 'नीति' पर बने रहेंगे और उसे फ्रेंच पुस्तक यहँ रखने देंगे? शायद नहीं।
तिवारी जी, "जयतराम कृत जोगप्रदीपिका" नामक पुस्तक का सम्पादन एम एल घारोए ने किया है और इसका प्रकाशन १९९९ में राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर द्वारा हुआ है। आईईएसटी लिपि में यह यहाँ देखी जा सकती है। तिवारी जी, अन्त में 'स्कैन प्रतिशत' को आप द्वारा इतना महत्व देने पर यह जानना चाहूँगा कि कहीं लिखा मिलेगा कि 'अच्छा स्कैन प्रतिशत अच्छी गुणवत्ता का प्रतीक है?'--अनुनाद सिंह (वार्ता) ०८:१४, १५ दिसम्बर २०२० (UTC)[उत्तर दें]
तिवारी जी, ऊपर गोरखबानी का जो दृष्टान्त आपने दिया है वह भी सही नहीं है। पहला तो यह कि इस पुस्तक में कॉपीराइट का कोई उल्लेख मुझे नहीं दिखा। दूसरा, यह केवल एक पुरानी पुस्तक को छापना नहीं है, बल्कि उसमें लेखक की 'अपनी सामग्री' भी है जो भारी मात्रा में है। जोगप्रदीपिका में केवल मूलग्रन्थ के दोहा, चौपाइयाँ आदि हैं, किसी प्रकार की किसी लेखक की व्याख्या या भाष्य नहीं। इसलिए यह' आम की तुलना भैंस से' करने जैसी है।--अनुनाद सिंह (वार्ता) ०८:३१, १५ दिसम्बर २०२० (UTC)[उत्तर दें]
@अनुनाद सिंह: जी, गोरखबानी के कॉपीराइट का विवरण तो दिया ही गया है। बस आपको स्रोत के आगे जहाँ पर djvu लिखा है वहाँ एक बार क्लिक करना है। मुझे इसकी पांडुलिपि नहीं मिली है, मिलेगी तो वह भी कॉमन्स पर लगा देंगे। अब आपके ऊपर है 'आम की तुलना भैंस से' करें या बीन से। स्कैन के बिना सामग्री डाली जा सकती है यदि उसका कोई अन्य स्रोत है। जैसे – कॉपीराइट मुक्त गीत-संगीत या भाषण। ऑडियो फाइल को भी स्रोत सामग्री माना जाता है और उसे भी स्कैन के तौर पर ही प्रामाणिक माना जाता है। बिना स्कैन के संकलित सामग्रियों को आज नहीं तो कल हटाना ही होगा। फ्रेंच विकिस्रोत वाले रोज कुछ पन्ने बिना स्कैन वाले हटाते हैं। अंग्रेजी विकिस्रोत पर भी दस साल से ऊपर का कूड़ा जमा हुआ है, जिसकी वो लोग रोज साफ-सफाई करते हैं। हमें तो मुश्किल से चौदह-पंद्रह महीने ही हुए हैं, इसीलिए आरंभ में ही इन चीजों को रोक रहे हैं। अब आप कुतर्क करने लगेंगे कि 'कहाँ लिखा है कि यहाँ केवल हिंदी सामग्री ही डाल सकते हैं?' तो कायदे से बात नहीं हो पाएगी। बाकी तो अनुनाद जी, मेरा भाषाज्ञान बहुत कम है। अब कोई उत्तर मैं रात में ही दे पाऊंगा। --अजीत कुमार तिवारी (वार्ता) ०९:२१, १५ दिसम्बर २०२० (UTC)[उत्तर दें]
@अजीत कुमार तिवारी: जी, "इसीलिए आरंभ में ही इन चीजों को रोक रहे हैं" - के पीछे जो मापांक (स्कैन प्रतिशत) है उसी पर तो मेरा प्रश्न है। क्या अंग्रेजी वाले इस बात को लेकर शर्मिन्दा हैं कि उनका स्कैन प्रतिशत बहुत कम है? या इस बात को लेकर गौरवान्वित हैं कि उनके विकिस्रोत पर अंग्रेजी में पचासों लाख पुस्तकें डिजिटल रूप में उपलब्ध हैं? हिन्दी के अलावा और कोई विकिस्रोत हो जहाँ स्कैन के बिना पुस्तकें नहीं डाल सकते, तो कृपया बताएँ? "केवल हिंदी सामग्री ही डाल सकते हैं?" का उल्लेख इसलिए किया कि यह बहुत महत्वपूर्ण है, और इसे 'कॉमन सेंस' नहीं कहा जा सकता। मेरा अन्तिम प्रश्न -- किसी व्याक्ति ने किसी संग्रहालय में रखी किसी पुरानी पाण्डुलिपि को पुस्तक रूप में आज छपवा दिया (शायद उस पाण्डुलिपि की सामग्री के संरक्षण के उद्देश्य से), तो कल से उस पुस्तक की सामग्री (अर्थात पाण्डुलिपि की सामग्री) पर उसका कॉपीराइट हो जाएगा? कोई दूसरा उस सामग्री को छाप नहीं सकेगा?--अनुनाद सिंह (वार्ता) ११:०६, १५ दिसम्बर २०२० (UTC)[उत्तर दें]
@अनुनाद सिंह: जी, इसे देखिए। अंग्रेजी विकिस्रोत पर तो अभी बमुश्किल पचीस लाख पन्ने भी नहीं है, आपको पचासों लाख पुस्तकें कहाँ से दिख गयीं? स्कैन प्रतिशत कम होने को लेकर न तो कोई शर्मिंदा है और न ही स्रोतहीन कॉपी-पेस्ट सामग्री की अधिकता को लेकर गौरवान्वित। इसी श्रेष्ठताबोधवादी मानसिकता के कारण संस्कृत का स्कैन प्रतिशत ५ से भी कम है। विकिपीडिया पर जैसे पर्याप्त संदर्भयुक्त लेख को गुणवत्ता का मानक माना जाता है वैसे ही विकिस्रोत पर स्कैन प्रतिशत को। जब किसी रचना का स्रोत/स्कैन ही नहीं है तो केवल कॉपी-पेस्ट की क्या प्रासंगिकता/प्रामाणिकता है? इतनी सी बात के लिए आपको लिखित दस्तावेज चाहिए? अंग्रेजी वालों ने गुटेनबर्ग से सामग्री लेने को इसलिए मान लिया है, क्योंकि गुटेनबर्ग पर स्रोत की प्रासंगिकता/प्रामाणिकता संदिग्ध नहीं है। गुटेनबर्ग के अलावा कहीं दूसरी जगह से कॉपी-पेस्ट करके जरा देखिएगा तो वहाँ क्या हाल होता है! हिंदी के अलावा बांग्ला और ब्रेटन विकिस्रोत पर भी स्कैन के बिना पुस्तकें नहीं बनतीं। यही कारण है कि स्कैन-प्रतिशत के मामले में प्रथम तीन स्थानों पर यही तीन विकिस्रोत हैं। कुछ स्कैनरहित पन्ने (न कि पुस्तक) वो भी १० से कम वहाँ जरूर मुख्य नामस्थान पर मिल जाएंगे क्योंकि लेखक, परियोजना या संबद्ध कुछ पन्ने भी कभी-कभी स्कैन के बिना वाले में दिख सकते हैं। आपके अंतिम प्रश्न का उत्तर यह है कि पांडुलिपि का संपादन करके छपवाना भी कॉपीराइट के अंतर्गत आएगा यदि संपादक ने उसे 'संपादित' किया है और कॉपीराइट मुक्त घोषित नहीं किया है। संपादित रचनाएँ भारत में संपादित होने के ६० वर्ष बाद ही कॉपीराइट मुक्त होंगी। पांडुलिपि को ज्यों का त्यों छपवा देने पर कॉपीराइट लागू नहीं होगा, केवल प्रकाशक को श्रेय देना ही पर्याप्त है। श्रेय देना इसलिए आवश्यक है क्योंकि अप्राप्य सामग्री को उपलब्ध कराना भी महत्वपूर्ण कार्य है। इसके लिए आप कॉमन्स पर कॉपीराइट नियमावली देख सकते हैं। यहाँ भी उसका संक्षिप्त विवरण आपको ऊपर उपलब्ध करवाया गया था। पता नहीं उसे भी आपने देखा या नहीं। --अजीत कुमार तिवारी (वार्ता) १४:४६, १५ दिसम्बर २०२० (UTC)[उत्तर दें]
@अजीत कुमार तिवारी: जी, सबसे पहले तथ्यात्मक गलती के लिए क्षमाप्रार्थी हूँ। वस्तुतः मैने तीन-चार दिन पहले अंग्रेजी विकिसोर्स के मुखपृष्ठ पर डाले जा चुके ग्रन्थों की संख्या देखा था जो पाँच लाख के लगभग है। पता नहीं कैसे मेरे दिमाग में यह संख्या 'पचास लाख' बैठ गयी।
आपने बताया है कि "बांग्ला और ब्रेटन विकिस्रोत पर भी स्कैन के बिना पुस्तकें नहीं बनतीं।" - यह कथन तो सही है, किन्तु इसका अर्थ यह नहीं है कि बांग्ला विकिसंकलन पर बिना स्कैन के सामग्री डालने की पूर्ण मनाही है। (जैसा कि अपने यहाँ कि एतत्सम्बन्धी नयी नीति कहती है)। यहाँ देखें , जिसमें उन्होने यह अवश्य कहा है कि जनवरी २०१६ से स्रोतहीन सामग्री डालना निषिद्ध है किन्तु उसमें यह जोड़ना नहीं भूले हैं कि कुछ परिस्थितियों में बिना स्कैन भी सामग्री डाली जा सकती है बशर्ते उसके साथ उस लेख के चर्चा पृष्ठ पर उस पुस्तक से सम्बन्धी जानकारी डाल दी जाय, तथा योगकर्ता उस लेख के महत्व पर कुछ अवश्य लिखे, आदि। मैने ब्रेटन का अभी नहीं देखा है। पर इतना अवश्य है कि पचासों विकिस्रोतों में से, बिना स्कैन के सामग्री का निषेध करने वाले विकिस्रोतों की संख्या बहुत कम है (शायद १५ प्रतिशत से भी कम)।
आप कहते हैं कि "श्रेष्ठताबोधवादी मानसिकता के कारण संस्कृत का स्कैन प्रतिशत ५ से भी कम है", लेकिन मैं संस्कृत विकिस्रोत में स्कैन प्रतिशत कम होने का कारण यह मानता हूँ कि संस्कृत में सुपठित (प्रूफरेड़्) सामग्री भरपूर मात्रा में है (जैसे गोएन्टजन आदि पर)। जब उनके पास प्रूफ रीड की हुई सामग्री है तो फिर स्कैन करना, उसे अपलोड करना, एक-एक पृष्ठ को पुनः ठीक करने का अनावश्यक काम क्यों करना चाहेंगे? और शायद यह भी कारण है कि वे आप की तरह 'स्कैन प्रतिशत' को १०० के पास पहुँचाना अपना परम लक्ष्य नहीं मानते।--अनुनाद सिंह (वार्ता) ०५:४६, १६ दिसम्बर २०२० (UTC)[उत्तर दें]