रेवातट (पृथ्वीराज-रासो)/परिशिष्ट/४. संकेताक्षर

रेवातट (पृथ्वीराज-रासो)
चंद वरदाई, संपादक विपिन बिहारी त्रिवेदी

हिंदी विभाग लखनऊ विश्वविद्यालय, पृष्ठ ४१६ से – ४१७ तक

 

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संकेताक्षर श्र० = थरवी अप० = अपभ्रंश उ० == उदाहरणार्थ ए० बी० ओ० आर० थाई० = अनल्स श्राव दि भंडारकर ओरियंटल रिसर्च इंस्टीट्यूट ए० एस० वी० = एशियाटिक सोसाइटी था गाल ए० ए० कृ० को० ए० को ० को० ए० कृ० गु० = गुजराती नागरी प्रचारिणी सभा द्वारा पाठ मिलान के लिए पृथ्वी- राजरासो की भिन्न-भिन्न स्थानों से आई हुई प्रतियों के लिए सांकेतिक शब्द गौ० ही ० श्रो० = गौरीशंकर हीराचंद श्रोमा छं० : = छन्द जे० आर० ए० बी० बी० एस= जर्नल याच दि रॉयल एशियाटिक सोसा- इटी वाम्बे ब्रांच जे० आर० ए० एस जर्नल व दि रॉयल एशियाटिक सोसाइटी (लंदन) जे० आर० ए० एस० वी = जर्नल आदि रॉयल एशियाटिक सोसाइटी बंगाल जे० ए० एस० बी० – जर्नल नाव दि एशियाटिक सोसाइटी व बंगाल डॉ० = डॉक्टर तु० = तुर्की दे० = देखिये ना० प्र० प० = नागरी प्रचारिणी पत्रिका ना० प्र० सं०= नागरी प्रचारिणी संस्करण ना० प्र० स०= नागरी प्रचारिणी सभा प० पश्तो पा० = पालि पु० पुल्लिंग ________________

पृ० पृष्ठ पृ० रा० = पृथ्वीराजरासो प्रा० प्राकृत प्रोसी० = प्रोसिडिंग्ज़ फा० = फारसी ६० व० = बहु वचन म० म० = महामहोपाध्याय रू० = रूपक वि० वि० विशेष विवरण - ( १७ ) वि० वि० प० = विशेष विवरण परिशिष्ट से सं० संस्कृत स० = समय हा०= = ह्येोर्नले हिं० हिंदी हिं० श० सा० - हिंदी शब्दसागर विशेष चिंह > यह चिह्न पूर्वरूप से पररूप के परिवर्तन को बताता है, जैसे सं० श्रीणि > प्रा० तिरण > हिं० तीन < यह चिह्न पररूप से पूर्वरूप के परिवर्तन को बताता है, जैसे हिं० तीन < प्रा० तिरिए <सं० त्रीणि ~ यह धातु का चिह्न है, जैसे सं०/