राबिन्सन-क्रूसो/क्रूसो के घर में नवीन अभ्यागत
क्रूसो के घर में नवीन अभ्यागत
मेरे इस द्वीपान्तर-निवास का सत्ताइसवाँ साल शुरू हुआ। मैंने यथाशक्ति परमेश्वर की अर्चा पूजा कर के इस स्मरणीय दिन का उत्सव किया। इतने दिनों से जो उनकी अप्रमेय दया का परिचय पाया है तदर्थ उनके चरण-कमलों में अपनी हार्दिक कृतज्ञता निवेदन की। मेरे मन में न मालूम क्यों एक ऐसी धारणा जम गई थी कि मेरे उद्धार का दिन सन्निकट है। अब मुझे एक वर्ष भी बन्दी की अवस्था में रहना न होगा।
छुटकारे की आशा होने पर भी मैं पहले ही की तरह खेती और गृहकार्य में समय व्यतीत करता था। वर्षा ऋतु आई। अब बाहर जाने आने का अधिक सुयोग नहीं मिलता। मैंने अपनी नाव को समुद्र के किनारे रख दिया था। ज्वार आने पर हम दोनों नाव को खींच कर बहुत ऊपर ले गये और उसके नीचे एक बहुत बड़ा गढ़ा खोदा। ज्वार घट जाने पर गढ़े के मुँह को बाँध से बन्द कर दिया। इससे नाव गढ़े के भीतर ही पानी पर तैरती रही। अब समुद्र में उसके बह जाने का भय न रहा। वृष्टि का पानी रोकने के लिए उसके ऊपर डाल-पत्तों का एक छप्पर बना कर के रख दिया। यात्रा के लिए उपयोगी सब सामान ठीक ठाक कर के निर्दिष्ट यात्रा के लिए नवम्बर दिसम्बर मास की अपेक्षा करने लगा।
"वर्षा विगत शरद ऋतु आई", वर्षा बीत चली। अब आकाश में कहीं बादल दिखाई नहीं देते। बिजली की वह चमक दमक अब कहीं देखने में नहीं आती। बादल ही के साथ वह भी अन्तर्हित हो गई। इन्द्रधनुष का कहीं नाम निशान नहीं रहा। सारा आकाशमण्डल निर्मल हो गया। रात में पूर्ण चन्द्र की छटा लोगों के हृदय को आकृष्ट करने लगी। पथिकगण स्वच्छन्दतापूर्वक स्वदेश यात्रा करने लगे। हम भी यात्रा के लिए धीरे धीरे आयोजना करने लगे। एक दिन मैंने फ़्राइडे को एक कछुवा पकड़ लाने का आदेश किया। फ़्राइडे जाने के बाद तुरन्त ही दौड़ता हुआ आया और घेरा लाँघ कर मेरे पास पहुँचा। उसने हाँफते हाँफते कहा-प्रभो, प्रभो, सर्वनाश हुआ! बड़ी विपत्ति है।
मैंने विस्मित हो कर पूछा-"क्या हुआ? कुछ कहो भी तो। क्या मामला है?" फ़्राइडे ने आँखे फाड़ कर के कहा-"अरे बाबा! एक! दो!! तीन! मैंने अपनी आँखों देखा है एक-दो-तीन।" यह सुन कर में अवाक् हो रहा! एक, दो, तीन क्या? बहुत सोचने पर समझा कि असभ्यों की तीन नावें किनारे आ लगी हैं। मैं फ़्राइडे को धैर्य्य बँधाने की चेष्टा करने लगा। भाँति भाँति से उसे ढाढ़स देने लगा। वह भय से काँप रहा था। उसकी यह धारणा थी कि वे लोग उसीको खोजने आये हैं और उसको पकड़ते ही मार कर खा जायँगे। मैंने उसको ढाढ़स दे कर कहा-घबराओ मत, देखो जो विपत्ति तुम पर है वही मुझ पर भी है। तब तुम इतना डरते क्यों हो? मैं उन सबों के साथ युद्ध करूँगा। क्या तुम मेरा साथ न दे सकोगे?
फ़्राइडे-हाँ, मैं बराबर साथ दूँगा और उन लोगों के साथ युद्ध करूँगा। परन्तु वे लोग गिनती में अधिक है।
मैं-इससे क्या? जो न भी मरेगा वह भय से अधमरा हो जायगा। मैं तुम्हारी रक्षा करूँगा, तुम मेरी रक्षा करोगे न?
फ़्राइडे-आपके लिए मैं अपने प्राण तक देने को तैयार हूँ। केवल आपकी आज्ञा चाहिए।
तब मैंने उससे बन्दूक़ और पिस्तौल लाने को कहा। उनमें जो जो शस्त्र अच्छे थे उनमें गोली और छर्रे भरे। अपनी कमर में नङ्गी तलवार बाँधी और फ़्राइडे की कमर में खञ्जर लटका दिया। जब हम दोनों हरवे-हथियार से लैस हो कर युद्ध करने को तैयार हुए तब मैंने पहाड़ के ऊपर चढ़ कर दूरबीन के द्वारा देखा कि वे लोग गिनती में इक्कीस थे, तीन आदमी बन्दी थे और तीन ही डोंगियाँ थीं। वे लोग कैदियों को खाने के आनन्द में मग्न हैं। हा! कैसा जघन्य आनन्द है! कैसी राक्षसी वृत्ति है! इस दफ़े वे लोग खाड़ी के पास एक दम जङ्गल के नज़दीक उतरे हैं।
मैं पहाड़ से उतर आया। कुछ अस्त्रशस्त्र फ़्राइडे को दिये, और कुछ मैंने अपने साथ ले लिये। मैं जैसा कहूँ वैसाही करना-यह उपदेश फ़्राइडे को देकर उससे चुपचाप साथ आने को कहा। इस वीरवेष में जाते जाते मेरे मन में फिर पुराना धर्मभाव जाग्रत हो उठा। मेरे हृदय में यह विवेक-बाणी बार बार गूँजने लगी कि उन लोगों ने मेरा क्या बिगाड़ा है! हम लोगों की आँखों में जो बड़ा ही नीच समझा जाता है वही उन लोगों के समाज का अगुवा होगा। तब उन लोगों के गुण-दोष का विचारक मैं कौन हूँ? मैंने इन बातों को सोच विचार कर तय किया कि जाऊँगा तो ज़रूर, तब शर्त यह है कि जैसा देखूँगा वैसा करूँगा।
चुपचाप वन के भीतर घुस करके हम दोनों आदमी उन असभ्य लोगों के पीछे एक पेड़ की आड़ में जा पहुँचे। फ़्राइडे ने झाँक कर देखा और मुझसे कहा,-"वे लोग एक बन्दी को मार कर खा रहे हैं। अब फिर दूसरे को मारेंगे। दूसरा व्यक्ति वही जलमग्न सत्रह गौरागों में का एक है।" अपने देशवासी की ऐसी दुर्दशा की बात सुनकर मेरा अन्तःकरण एकदम विद्रोह से भर उठा। मैंने दूरबीन लगाकर देखा। बन्दी की पोशाक आदि से अनुमान किया कि वह यूरोप देशवासी है। एक मज़बूत लता से उसके हाथ-पैर बँधे हैं। वह किनारे पर एक तरफ़ बालू पर पड़ा है। यह देख कर मैं बीस पच्चीस डग और आगे बढ़ एक झुरमुट की ओट में छिप रहा। तब मेरे और उन असभ्यों के बीच करीब अस्सी गज़ का फासला रहा होगा।
मैंने देखा, उन्नीस आदमी एक जगह बैठे हैं और दो आदमी उस यूरोपियन को मारने गये हैं। वे दोनों निहुर कर उसका बन्धन खोल रहे हैं। अब विलम्ब करना ठीक नहीं, यह सोच कर मैंने फ़्राइडे से कहा-"देखो मैं जैसा जैसा करता हूँ तुम भी वैसा ही करो।" यह कह कर मैंने एक बन्दूक़ पास रख ली और दूसरी उठाकर निशाना ठीक किया। फ़्राइडे ने भी वैसा ही किया। मैंने कहा-"फ़ायर!" दोनों बन्दूक़ें एक साथ गरज उठीं। मेरी अपेक्षा फ़्राइडे का लक्ष्य अच्छा हुआ था। उसकी गोली से दो हत और तीन घायल हुए। मेरी गोली से एक हत और दो आहत हुए थे, बाकी सब भयभीत होकर चौंक उठे। किन्तु यह अलक्षित मृत्यु किस तरफ़ से आती है इसका कुछ निश्चय न कर वे लोग खड़े हो चकित दृष्टि से चारों ओर ताकने लगे। किस ओर भागने से बचेंगे, इसका भी कुछ अन्दाज़ उन्हें नहीं था। हम दोनों ने फिर बन्दूक़ें मारीं। इन बन्दूक़ों में छर्रे भरे थे। इस कारण अब की बार दो ही मरे। किन्तु छर्रे लगने से इतने अधिक लोग घायल हुए कि वे लोहू लुहान होकर, पागलों की भाँति चीत्कार करते हुए, इधर उधर दौड़ने लगे। थोड़ी ही देर के बाद उन घायलों में तीन मनुष्य धरती पर मूर्च्छित हो कर गिर पड़े।
इसके बाद हम दोनों भरी हुई एक एक बन्दूक़ लेकर झुरमुट की ओट से निकल कर बाहर आये। उन लोगों ने ज्यों ही हमारी ओर देखा त्यों ही हम खूब ज़ोर से गरज उठे। हम भारी भारी बन्दूकों को कन्धे पर रक्खे फुर्ती से दौड़ नहीं सकते थे, तथापि जहाँ तक हो सका तेज़ी से जाकर बन्दियों के पास पहुँचे। जो बन्दियों को लाने गये थे वे दोनों आदमी तथा तीन व्यक्ति और डर कर नाव की शरण लेने जाते थे। मैंने फ़्राइडे से कहा-"मारो उन लोगों को।" फ़्राइडे पूर्ण साहस कर के उन लोगों की ओर कुछ दूर तक और दौड़ गया; तब तक असभ्यगण नाव पर सवार हो चुके थे और भागने का उद्योग कर रहे थे। इसी बीच फ़्राइडे ने दो ही गोलियों में उन लोगों का काम तमाम कर दिया।
इस अरसे में मैंने अपनी छुरी निकाल कर बन्दी के हाथों-पैरों का बन्धन काट डाला और पोर्चुगीज़ भाषा में पूछा, "आप कौन हैं?" उन्होंने लैटिन भाषा में उत्तर दिया,-"मैं किरिस्तान हूँ।" उत्तर तो उन्होंने दे दिया पर भूख-प्यास से वे ऐसे व्याकुल थे कि भली भाँति बोल नहीं सकते थे। मैंने झट अपनी जेब से दूध-रोटी निकाल कर उनको खाने के लिए दी। तब फिर मैंने पूछा-"आप किस देश के रहने वाले हैं?" उन्होंने कहा-"स्पेन के।" फिर उन्होंने अपने आकार इङ्गित और चेष्टा से मुझे कृतज्ञता सहित अनेक धन्यवाद दिये। मैंने टूटी-फूटी स्पेनिश भाषा में कहा,-"महाशय, परिचय पीछे होगा, अभी युद्ध जारी है। यदि आपसे हो सके तो यह पिस्तौल और तलवार लीजिए, तथा शत्रुओं का विनाश कीजिए।" हथियार पाते ही मानो उन्हें नवजीवन मिल गया। उनका उत्साह और साहस सौगुना बढ़ गया। उन्होंने बड़े वेग से जाकर दो दुश्मनों को तलवार से दो टुकड़े कर डाला। असभ्यगण अतर्कित भाव से आक्रान्त होकर भय और आश्चर्य से किंकर्तव्य-विमूढ़ हो रहे थे। कितने ही मर कर गिरने लगे और कितने ही भय से मूर्च्छित होकर गिरने लगे।
मैंने अपनी तलवार और पिस्तौल स्पेनियर्ड को दी थी। इससे मैंने अपनी भरी हुई बन्दूक़ को विशेष आवश्यकता के लिए रख छोड़ा था। मैंने फ़्राइडे को पुकार कर कहा-झुरमुट की आड़ से और दो बन्दूक़ें ले आओ। वह वायु-वेग से दौड़ कर ले आया। मैं उसको अपनी बन्दूक़ देकर दूसरी भरने लगा। फ़्राइडे से कह दिया कि बन्दूक़ खाली हो जाने पर मुझको दे देना और भरी हुई ले लेना। मैं बन्दूक़ भर ही रहा था कि एक असभ्य वीर ने हाथ में काठ की तलवार लेकर स्पेनियर्ड पर आक्रमण किया। स्पेनियर्ड दुर्बल होने पर भी खूब साहसी था। वह उसके साथ बड़ी बहादुरी से युद्ध करने लगा और दो बार उस असभ्य के सिर पर अस्त्र प्रहार किया। असभ्य दीर्घकाय और बलिष्ठ था। उसने उन आघातों की कुछ परवा न कर के स्पेनियर्ड को धक्का मार कर गिरा दिया और उनके हाथ से तलवार छीनने लगा। तब स्पेनियर्ड ने तलवार को दूर फेंक कर पिस्तौल ली। मैं उनको धरती पर गिरा देख सहायता के लिए दौड़ा जा रहा था कि मेरे पहुँचने के पहले ही उन्होंने पिस्तौल की एक ही गोली से उस नीच को मार डाला। फ़्राइडे ने अपना खंजर हाथ में लेकर पराजित शत्रुओं का पीछा किया और जिनको पकड़ पाया उन्हें मार डाला। स्पेनियर्ड ने मेरे पास आकर एक बन्दूक़ मुझसे माँग ली और उससे दो असभ्यों को घायल किया। इक्कीस मनुष्यों में केवल चार आहत और अनाहत व्यक्ति डोंगी पर सवार होकर भाग चले। फ़्राइडे ने उन पर लक्ष्य कर के दो गोलियाँ मारीं, पर ऐसा जान न पड़ा कि किसी को लगी हो।
फ़्राइडे उन लोगों का पीछा करने को प्रस्तुत हुआ। उन का भागना मुझे भी पसन्द न था। कारण यह कि वे लोग अपने देश जाकर शायद अपनी मण्डली को खबर दें और वहाँ से दो तीन सौ आदमी पाकर हम लोगों को मार कर खा डालें। इस लिए फ्राइडे के प्रस्ताव पर स्वीकृत होकर मैं झट कूद कर नाव पर सवार हुआ। वहाँ देखा कि एक आदमी, जिसके हाथ-पाँव बँधे हैं, डोंगी के भीतर पड़ा है और मारे डर के अधमरा सा हो रहा है। उसने सिर्फ शोरगुल सुना है, देखने तो कुछ आया ही नहीं। अतएव उसका भयभीत होना स्वाभाविक ही था। मैंने तुरन्त उसका बन्धन काट दिया। फिर उसको उठाने की चेष्टा की। किन्तु वह उठे बिना ही गोंगाँ करने लगा। शायद उसने यह समझा हो कि मैं उसको मारने के लिए उठा रहा हूँ। तब मैंने फ़्राइडे से कहा कि इसको समझा दो कि यह डरे नहीं, और इसे कुछ खाने को भी दो। फ़्राइडे के समझाने पर वह उठ बैठा। फ़्राइडे ने जैसे ही उस व्यक्ति का मुँह देखा वैसे ही उसको अपने गले से लगा कर बड़ा ही स्नेह जनाया। वह हँसकर, रोकर और नाच-गाकर खुशी से पागल हो उठा। बड़ी कठिनाई से मैंने समझा कि वह फ़्राइडे का बाप था। उसका पितृस्नेह देख कर मेरी आँखों में आनन्दाश्रु उमड़ आये।
फ़्राइडे कभी बाप का मस्तक अपनी छाती में लगाता, कभी अपना मस्तक उसकी छाती में छिपाता था; कभी नाचता, कभी हर्ष से चीत्कार कर के नाव से नीचे उछल पड़ता था। उस बूढ़े के हाथ-पैर बन्धन से जकड़ गये थे। फ्राइडे ने बैठ कर धीरे धीरे उसके हाथ-पैर दबा दिये। उसने बाप को पा कर जितना आह्लाद प्रकट किया, वह समझाने में मैं सर्वथा असमर्थ हूँ।
इस अघटित घटना से हम उन असभ्य भगोड़ों का पीछा न कर सके। कुछ देर के बाद जब मैंने समझा कि अब फ़्राइडे का आनन्दोच्छवास कुछ कम हो चला है तब मैंने उसको पुकारा। वह छलाँग मार कर हँसी-भरे मुख से मेरे सामने आ गया। मैंने पूछा, क्यों रे! तू ने अपने बूढ़े बाप को कुछ खाने को दिया है या केवल आदर ही कर रहा है? फ़्राइडे ने कहा-"नहीं, खाने को तो कुछ भी नहीं दिया। मेरे पेट में आप ही आग लगी थी। मेरे पास जो कुछ था उसे मैंने हो खा डाला।" तब मैंने अपने बैग से रोटी और मुट्ठी भर किसमिस निकाल कर उसे दी। कुछ तो उसके बाप के लिए और कुछ ख़ास कर उसके लिए। किन्तु उसने सब ले जाकर बाप को दे दिया। इसके बाद वह पलक मारते ही वहाँ से गायब हो गया। मैने उसे कितना ही पुकारा, पर उसने मेरी एक न सुनी। थोड़ी ही देर में वह घड़े भर जल और दो रोटियाँ लेकर हाज़िर हो गया। तब मैंने समझा कि वह सीधा घर जाकर यह चीज़े ले आया है। दोनों रोटियाँ मुझको दीं और जल अपने बाप को दिया। वह पानी पीकर स्वस्थ हो गया। मुझे भी बड़ी प्यास लगी थी। मैंने भी थोड़ा सा जलपान किया।
मैंने थोड़ा सा जल स्पेनियर्ड को भी देने के लिए कहा। वह बेचारा एक पेड़ के नीचे घास पर लेटा हुआ विश्राम कर रहा था। वह बहुत थका-माँदा था। उसके हाथ-पैर सख्ती से बाँधे जाने के कारण सूज गये थे। फ़्राइडे ने रोटी और पानी लेकर उसको दिया। वह उठ कर बैठा और खाने लगा। मैंने भी उसे, पास जाकर, एक मुट्टी किसमिस दी। उसने मेरे मुँह की ओर जिस दृष्टि से देखा, वह दृष्टि कृतज्ञता के भाव से भरी थी। यद्यपि युद्ध के समय उसने खूब बहादुरी दिखाई थी किन्तु इस समय वह एक दम बेसुध हो गया था। दो तीन बार उठने की चेष्टा की पर उठ न सका। उसके सूजे हुए दोनों पैरों में बड़ी पीड़ा हो रही थी। मैंने फ़्राइडे से उसके पैर दाब देने तथा शराब की मालिश कर देने को कहा।
फ्राइडे जब तक वहाँ था तब तक मिनट मिनट पर दृष्टि फेर कर अपने पिता को देख लेता था। एक बार उसने पीछे की ओर घूमकर देखा, उसको पिता देख न पड़े। वह फ़ौरन उठकर खड़ा हुआ और किसी से कुछ कहे बिना ही एक ही दौड़ में बूढ़े के पास जा पहुँचा। वह ऐसे ज़ोर से दौड़ कर गया था कि उसके पैर मानो धरती पर पड़ते ही न थे। उसने जाकर देखा, उसके वृद्ध पिता आराम करने की इच्छा से सो रहे हैं। तब फिर वह हमारे पास लौट आया। मैंने उससे कहा-"स्पेनियर्ड को उठा कर नाव पर रख आओ। इसको घर ले जाना होगा।" फ़्राइडे खूब बलिष्ठ था, वह स्पेनियर्ड को पीठ पर लादकर नाव पर रख आया। इसके बाद वह ऐसी शीघ्रता से नाव को खेकर ले चला कि मैं किनारे किनारे उसके साथ बराबर नहीं जा सकता था। उसने बिना किसी विघ्न-बाधा के नाव को खाड़ी में ले जाकर झट उस पर से उतर कर फिर वायुवेग से दौड़ लगाई। वह मेरे पास से दौड़ा हुआ जा रहा था। मैंने पूछा-"कहाँ जा रहे हो?" उसने कहा-"दूसरी डोंगी भी लाता हूँ।" प्रश्न-उत्तर समाप्त होते न होते वह दृष्टि-पथ से निकल गया। ऐसा विचित्र दौड़ना मनुष्यों की तो कुछ बात ही नहीं, मैंने घोड़ों में भी प्रायः कम देखा होगा। मैं पैदल चल कर अभी खाड़ी तक पहुँचा भी नहीं कि उसने दूसरी डोंगी भी लाकर हाज़िर कर दी। उसने मुझे पार उतार कर उन दोनों अभ्यागतों को भी पार उतारा। वे दोनों अतिथि चलने में असमर्थ थे। मैं इन दोनों को घर तक ले चलने का उपाय सोचने लगा। झटपट एक खटोली सी तैयार करके उस पर उन दोनों को लिटा कर फ़्राइडे और मैं उठा कर घर ले आया।