योगिराज श्रीकृष्ण
योगिराज श्रीकृष्ण
परवर्ती काल में कृष्ण के उदात्त तथा महनीय
आर्योचित चरित्र को समझने में चाहे लोगों
ने अनेक भूलें ही क्यों न की हों, उनके
समकालीन तथा अत्यन्त आत्मीय जनों ने उस
महाप्राण व्यक्तित्व का सही मूल्यांकन किया था।
सम्राट् युधिष्ठिर उनका सम्मान करते थे
तथा उनके परामर्श को सर्वोपरि महत्त्व देते थे।
पितामह भीष्म, आचार्य द्रोण तथा कृपाचार्य
जैसे प्रतिपक्ष के लोग भी उन्हें भरपूर
आदर देते थे।
आर्य जीवनकला का सर्वांगीण विकास हमें
कृष्ण के पावन चरित्र में दिखाई देता है।
जीवन का कोई ऐसा क्षेत्र नहीं है जिसमें उन्हें
सफलता नहीं मिली। सर्वत्र उनकी अद्भुत
मेधा तथा सर्वग्रासिनी प्रतिभा के दर्शन होते हैं।
वे एक ओर महान् राजनीतिज्ञ, क्रान्तिविधाता,
धर्म पर आधारित नवीन साम्राज्य के स्रष्टा
राष्ट्रपुरुष के रूप में दिखाई पड़ते हैं तो
दूसरी ओर धर्म, अध्यात्म, दर्शन और नीति
के सूक्ष्म चिन्तक, विवेचक तथा प्रचारक भी हैं।
उनके समय में भारत देश सुदूर गांधार
से लेकर दक्षिण की सह्याद्रि पर्वतमाला तक
क्षत्रियों के छोटे-छोटे, स्वतंत्र किन्तु
निरंकुश राज्यों में विभक्त हो चुका था।
उन्हें एकता के सूत्र में पिरोकर समग्र
भरतखण्ड को एक सुदृढ़ राजनीतिक इकाई
के रूप में पिरोने वाला कोई नहीं था।
(शेष दूसरे फ्लैप पर)
योगिराज श्रीकृष्ण
(जीवन-चरित)
"राजा राम मोहन राय पुस्तकालय प्रतिष्ठान,
कोलकाता के सौजन्य से प्राप्त"
योगिराज श्रीकृष्ण
लाला लाजपतराय
अनुवाद
मास्टर हरिद्वारीसिंह बेदिल
सम्पादन
डॉ॰ भवानीलाल भारतीय
ISBN--81-88118-14-1
© प्रकाशक
प्रकाशक
आर्य प्रकाशन मंडल
सरस्वती भंडार, गांधीनगर
दिल्ली-110031
संस्करण
2003
आवरण
चेतनदास
मूल्य
एक सौ बीस रुपये
मुद्रक
एस॰एन॰ प्रिंटर्स
नवीन शाहदरा, दिल्ली-110032
YOGIRAJ SHRI KRISHNA (Hindi)
by Lala Lajpat Rai
Price : Rs. 120.00
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