युद्ध और अहिंसा
मोहनदास करमचंद गाँधी, संपादक सस्ता साहित्य मण्डल, अनुवादक सर्वोदय साहित्यमाला

नई दिल्ली: सस्ता साहित्य मण्डल, पृष्ठ ७१ से – ७३ तक

 

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आतंक

आजकल अखबरों में आतंक के बारे में कई समाचार पढ़ने को मिलते हैं और इससे भी ज्यादा बातें सुनाई पड़ती हैं। एक मित्र लिखते हैं-

“एकान्त सेवाग्राम में बैठे हुए आप उन बातों और फुसफुसाहटों-अफवाहों की कल्प‌‍‌‌‌ना भी नहीं कर सकते जो व्यस्त नगरों में फैल रही हैं। लोगों पर आतंक या भय छा गया है! आतंक सबसे ज्यादा निःसत्त्व करनेवाली अवस्था जिसमें कोई हो सकता है। आतंक की तो यहाँ कोई वजह ही नहीं है। चाहे जो कुछ गुजरे, आदमी को अपना दिल मज़बूत रखना चाहिए। लड़ाई एक निरी बुराई है। लेकिन उससे एक अच्छी बात जरूर होती है। यह भय को दूर कर देती है और बहादुरी को ऊपर लाती है। मित्र-राष्ट्ररों और जर्मनों दोनों के बीच अब तक लाखों की जानें गई होंगी। ये लोग पानी की तरह खून वहा रहे हैं। फ्रांस और ब्रिटेन में बूढ़े आदमी बूढ़ी और जवान स्त्रियाँ और बच्चे मौत के बीचोंबीच रह रहे हैं। फिर भी वहाँ कोई आतंक नहीं है। अगर वे आतंक या भय से अभिभूत हो जायें, तो यह उनके लिए जर्मन गोलियों, गोलों और जहरीली गैसों से कहीं भयंकर शत्रू बन जायेगा। हमें इन कष्ट सहनेवाले पश्चिमी देशों से शिक्षा लेनी चाहिए और अपने बीच से आतंक को निकाल बाहर कर देना चाहिए। फिर हिन्दुस्तान में तो आतंक के लिए कोई वजह ही नहीं है। आगर ब्रिटैन को मरना भी पड़ा तो वह कठिनाई से और बहादुरी के साथ मरेगा। हम हार के समाचार सुन सकते हैं, पर हमें पस्तहिम्मती की बात कभी सुनाई न पड़ेगी। जो कुछ घटित होगा, व्यवस्थापूर्वक घटित होगा।

इसलिए जो लोग मेरी बात पर कान देते हैं उनसे में कहूँगा कि सदा की तरह अपना रोजगार या काम करते जाओ। जमा की हुई रकमों को मत निकालो, न नोटों को नकदी में बदलने की जल्दबाजी करो। अगर तुम सावधान हो तो तुम्हें कोई नया खतरा न उठाना पड़ेगा। अगर हममें विप्लव उठ खड़ा हो तो जमीन में गड़े हुए या तिजोरियों में रखे हुए धन को बैंक या कागज की बनिस्बत ज्यादा सुरक्षित न समझना चाहिए। वैसे तो इस वक्त हर चीज में खतरा है। ऐसी हालत में तुम जैसे हो वैसे बने रहना ही सबसे अच्छा है। तुम्हारा धीरज, अगर ज्यादा लोग उसका अनुसरण करें, बाजार में स्थिरता लायेगा। अराजकता के खिलाफ़ वह सबसे बड़ा प्रतिबन्ध होगा। इसमें शक नहीं कि ऐसे वक्त में गुण्डई का डर रहता है। पर इसका मुक़ाबला करने
के लिए तुम्हें खुद तैयार रहना चाहिए। गुण्डे सिर्फ बुजदिल लोगों के बीच पनप सकते हैं । पर जो लोग हिंसात्मक या अहिंसात्मक रूप से अपनी रक्षा करने के लायक हैं उनसे उनको कोई रियायत नहीं मिल सकती। अहिंसात्मक अत्मरक्षण में अपने जान-माल के बारे में साहसिकता की वृत्ति होती है। अगर उसपर दृढ़ रहा जाये तो तो अंत में वह गुण्डई का निश्चित इलाज साबित होगा। लेकिन अहिंसा एक दिन में तो सीखी नहीं जा सकती । इसके लिए अभ्यास और आचरण की जरूरत है। आप अभी से इसे सीखना शुरू कर सकते हैं । आपको अपनी जान या माल या दोनों को कुर्बान करने को तैयार होना चाहिए । अगर हिंसात्मक या अहिंसात्मक किसी तरह से अपनी रक्षा करना आप नहीं जानते तो अपनी सारी कोशिशों के बावजूद सरकार आपको बचाने में समर्थ न होगी। चाहे कोई सरकार कितनी ही ताकतवर हो, जनता की मदद के बिना इसे नहीं कर सकती । अगर ईश्वर भी सिर्फ उन्हींकी मदद करता है जो खुद अपनी मदद करते हैं, तो नाशमान सरकारों के सम्बन्ध में यह बात कितनी सत्य होगी । हिम्मत मत हारो और यह मत सोचो कि कल कोई सरकार न होगी और अराजकता-ही-अराजकता रह जायेगी। आप खुद अभी सरकार बन सकते हैं और जिस आफत की आप कल्पना करते हैं उसमें तो आपको सरकार बनना ही पड़ेगा । नहीं तो आप नष्ट हो जायेंगे।
'हरिजन-सेवक' : ८ जून, १९४०