भ्रमरगीत-सार/९२-हरि हैं राजनीति पढ़ि आए

बनारस: साहित्य-सेवा-सदन, पृष्ठ १२२

 

हरि हैं राजनीति पढ़ि आए।

समुझी बात कहत मधुकर जो? समाचार कछु पाए?
इक अति चतुर हुते पहिले ही, अरु करि नेह दिखाए।
जानी बुद्धि बड़ी, जुवतिन को जोग सँदेस पठाए॥
भले लोग आगे के, सखि री! परहित डोलत धाए।
वे अपने मन फेरि पाइए जे हैं चलत चुराए॥
ते क्यों नीति करत आपुन जे औरनि रीति छुड़ाए?
राजधर्म सब भए सूर जहँ प्रजा न जायँ सताए॥९२॥