भ्रमरगीत-सार/३ तबहिं उपंगसुत आय गए

भ्रमरगीत-सार
रामचंद्र शुक्ल

बनारस: साहित्य-सेवा-सदन, पृष्ठ ८७

 

राग बिलावल
तबहिं उपँगसुत[] आय गए।

सखा सखा कछु अंतर नाहीं भरि भरि अंक लए॥
अति सुंदर तन स्याम सरीखो देखत हरि पछिताने।
ऐसे को वैसी बुधि होती ब्रज पठवैं तब आने॥
या आगे रस-काब्य प्रकासे जोग-बचन प्रगटावै।
सूर ज्ञान दृढ़ याके हिरदय युबतिन जोग सिखावै॥३॥

  1. उपँगसुत= उद्धव।