भ्रमरगीत-सार/३६९-ऊधो जू मैं तिहारे चरनन लागौं बारक या ब्रज करबि भाँवरी
राग बिहागरो
ऊधो जू! मैं तिहारे चरनन लागौं बारक या ब्रज करबि भाँवरी।
निसि न नींद आवै, दिन न भोजन भावै, मग जोवत भई दृष्टि झाँवरी॥
बहै बृंदावन स्याम सघन बन, बहै सुभग सरि साँवरी।
एक स्याम बिनु स्याम न भावै सुधि न रही जैसे बकत बावरी॥
लाज छाँड़ि हम उतहिं आवती चलि न सकति आवै बिरह-ताँवरी[१]।
सूरदास प्रभु बेगि दरस दीजै होय है जग में कीरति रावरी॥३६९॥
- ↑ ताँवरी=ताप, ज्वर,।