भ्रमरगीत-सार/३५४-जाहु जाहु ऊधो! जाने हौ पहचाने हौ

बनारस: साहित्य-सेवा-सदन, पृष्ठ २१३

 

जाहु जाहु ऊधो! जाने हौ पहचाने हौ।
जैसे हरि तैसे तुम सेवक, कपट चतुरई-साने हौ॥
निर्गुन-ज्ञान कहाँ तुम पायो, केहि सिखए ब्रज आने हौ।
यह उपदेस देहु लै कुबजहि जाके रूप लुभाने हौ॥
कहँ लगि कहौं योग की बातैं, बाँचत नैन पिराने हो।
सूरदास प्रभु हम हैं खोटी तुम तो बारह बाने[] हौ॥३५४॥

  1. बारह बाने=बारह बानी के अर्थात् चोखे, खरे (सोने)।