भ्रमरगीत-सार/३४५-सखी री! मो मन धोखे जात

बनारस: साहित्य-सेवा-सदन, पृष्ठ २११ से – २१२ तक

 

सखी री! मो मन धोखे जात।
ऊधो कहत, रहत हरि मधुपुरि, गत आगत[] न थकात॥

इत देखौं तौ आगे मधुकर मत्त-न्याय सतरात[]
फिरि चाहौं[] तौ प्राननाथ उत सुनत कथा मुसकात॥
हरि साँचे ज्ञानी सब झूठे जे निर्गुन-जस गात[]
सूरदास जेहि सब जग डहक्यो[] ते इनको डहकात॥३४५॥

  1. गत आगत=आते जाते।
  2. मत-न्याय सतरात=पागल की तरह बड़बड़ाता है।
  3. फिरि चाहौं=फिरकर जो मथुरा की ओर देखती हूँ (मन बराबर मथुरा आता जाता है)।
  4. जस गात=यश गाते हैं।
  5. डहक्यो=ठगा, धोखे में डाला माया द्वारा।