बनारस: साहित्य-सेवा-सदन, पृष्ठ २००
बलैया लैहौं, हो बीर बादर! तुम्हरे रूप सम हमरे प्रीतम गए निकट जल-सागर॥ पा लागौं द्वारका सिधारौ बिरहिनि के दुखदागर। ऐसो संग सूर के प्रभु को करुनाधाम उजागर॥३१३॥