भ्रमरगीत-सार/२८३-परम बियोगिनि गोबिंद बिनु कैसे बितवैं दिन सावन के

बनारस: साहित्य-सेवा-सदन, पृष्ठ १८८ से – १८९ तक

 

परम बियोगिनि गोबिंद बिनु कैसे बितवैं दिन सावन के?
हरित भूमि, भरे सलिल सरोवर, मिटे मग मोहन आवन के॥

पहिरे सुहाए सुबास सुहागिनि झुंडन झूलन गावन के।
गरजत घुमरि घमंड दामिनी मदन धनुष धरि धावन के॥
दादुर मोर सोर सारँग पिक सोहैं निसा सूरमा वन के।
सूरदास निसि कैसे निघटत त्रिगुन किए सिर रावन के[]॥२८३॥

  1. त्रिगुन...रावन के=रावण के सिर के तिगुने अर्थात् तीस (रातभर में तीस घड़ियाँ होती हैं)।