भ्रमरगीत-सार/२८०-किधौं घन गरजत नहिं उन देसनि

बनारस: साहित्य-सेवा-सदन, पृष्ठ १८७

 

राग मलार

किधौं घन गरजत नहिं उन देसनि?
किधौं वहि इंद्र हठिहि हरि बरज्यौ, दादुर खाए सेसनि[]
किधौं वहि देस बकन मग छाँड्यो, धर[] बूड़ति न प्रबेसनि।
किधौं वहि देस मोर, चातक, पिक बधिकन बधे बिसेषनि॥
किधौं वहि देस बाल नहिं झूलति गावत गीत सहेसनि[]
पथिक न चलत सूर के प्रभु पै जासों कहौं सँदेसनि॥२८०॥

  1. सेसनि=साँपों ने।
  2. धर=धरा, पृथ्वी।
  3. सहेसनि=सहर्ष।