भ्रमरगीत-सार/२७२-मधुकर मधुमदमातो डोलत
मधुकर! मधुमदमातो डोलत।
जिय उपजत सोइ कहत न लाजत सूधे बोल न बोलत॥
बकत फिरत मदिरा के लीन्हें बारबार तन घूमत।
ब्रीड़ारहित[१] सबन अवलोकत लता-कली-मुख चूमत॥
अपनेहूँ मन की सुधि नाहीं पर्यो आन ही कोठो[२]॥
सावधान करि लेहि अपनपौ तब हम सों करु गोठो[३]।
मुख लागी है पराग पीक की, डारत नाहिंन धोई।
ताँसों कह कहिए सुनु, सूर, लाज डारि सब खोई॥२७२॥