भ्रमरगीत-सार/२७०-मधुप! तुम कहा यहै गुन गावहु

बनारस: साहित्य-सेवा-सदन, पृष्ठ १८३

 

राग सोरठ

मधुप! तुम कहा यहै गुन गावहु।
यह प्रिय कथा नगर-नारिन सों कहौं जहाँ कछु पावहु।
जानत मरम नंदनंदन को, और प्रसंग चलावहु।
हम नाहीं कमलिनि-सी भोरी करि चतुरई मनावहु॥
जनि परसौं अलि! चरन हमारे बिरह-ताप उपजावहु।
हम नाहीं कुबिजा-सी भोरी, करि चातुरी दिखावहु॥
अति बिचित्र लरिका की नाईं गुरु दिखाय बहरावहु।
सूरदास प्रभु नागरमनि सों कोउ बिधि आनि मिलाबहु॥२७०॥