भ्रमरगीत-सार/२६-ए अलि! कहा जोग में नीको
ए अलि! कहा जोग में नीको?
तजि रसरीति नंदनंदन की सिखवत निर्गुन फीको॥
देखत सुनत नाहिं कछु स्रवननि, ज्योति ज्योति करि ध्यावत।
सुंदरस्याम दयालु कृपानिधि कैसे हौ बिसरावत?
सुनि रसाल मुरली-सुर की धुनि सोई कौतुक-रस भूलैं।
अपनी भुजा ग्रीव पर मेलैं[१] गोपिन के सुख फूलैं॥
लोककानि कुल को भ्रम प्रभु मिलि मिलि कै घर बन खेली[२]।
अब तुम सूर खवावन आए जोग जहर की बेली॥२६॥