भ्रमरगीत-सार/२५७-मधुप बिराने लोग बटाऊ

बनारस: साहित्य-सेवा-सदन, पृष्ठ १७७ से – १७८ तक

 

राग नट

मधुप! बिराने लोग बटाऊ[]
दिन दस रहत काज अपने को तजि गए फिरे न काऊ[]
प्रथम सिद्धि पठई हरि हमको, आयौ ज्ञान अगाऊ।
हमको जोग, भोग कुब्जा को, वाको यहै सुभाऊ॥

कीजै कहा नंदनन्दन को जिनके है सतभाऊ।
सूरदास प्रभु तन मन अरप्यो प्रान रहैं कै जाऊ॥२५७॥

  1. बटाऊ=पथिक।)
  2. काऊ=कभी