बनारस: साहित्य-सेवा-सदन, पृष्ठ १६७ से – १६८ तक
पूरब प्रीति बिसारी गिरिधर नवतन राचे और॥
जा दिन तें मधुपुरी सिधारे धीरज रह्यो न मोर।
जन्म जन्म की दासी तुम्हरी नागर नंदकिसोर॥
चितवनि-बान लगाए मोहन निकसे उर वहि ओर[१]।
सूरदास प्रभु कबहिं मिलौगे, कहाँ रहे रनछोर?॥२३०॥