भ्रमरगीत-सार/२२८-ऊधो! राखति हौं पति तेरी

भ्रमरगीत-सार
रामचंद्र शुक्ल

बनारस: साहित्य-सेवा-सदन, पृष्ठ १६७

 

ऊधो! राखति हौं पति तेरी।

ह्याँ तें जाहु, दुर आगे तें देखत आँखि बरति हैं मेरी॥
तुम जो कहत गोपाल सत्य है, देखहु आय न कुब्जा घेरी।
ते तौ तैसेई दोउ बने हैं, वै अहीर वह कँस की चेरी॥
तुम सारिखे बसीठ पठाए, कहा कहौं उनकी मति फेरी।
सूरदास प्रभु तुम्हरे मिलन को ग्वालिनि कै सँग जोवति हेरी॥२२८॥