भ्रमरगीत-सार/२२४-ऊधो सरद समयहू आयो
ऊधो! सरद समयहू आयो।
बहुतै दिवस रटत चातक तकि तेउ स्वाति-जल पायो॥
कबहुँक ध्यान धरत उर-अन्तर मुख मुरली लै गावत।
सो रसरास पुलिन जमुना की ससि देखे सुधि आवत॥
जासों लगन-प्रीति अन्तरगत औगुन गुन करि भावत।
हमसों कपट, लोक-डर तातें सूर सनेह जनावत॥२२४॥