भ्रमरगीत-सार/२२४-ऊधो सरद समयहू आयो

बनारस: साहित्य-सेवा-सदन, पृष्ठ १६६

 

राग कान्हरो
ऊधो! सरद समयहू आयो।

बहुतै दिवस रटत चातक तकि तेउ स्वाति-जल पायो॥
कबहुँक ध्यान धरत उर-अन्तर मुख मुरली लै गावत।
सो रसरास पुलिन जमुना की ससि देखे सुधि आवत॥
जासों लगन-प्रीति अन्तरगत औगुन गुन करि भावत।
हमसों कपट, लोक-डर तातें सूर सनेह जनावत॥२२४॥