भ्रमरगीत-सार/२१७-ऊधो जाय बहुरि सुनि आवहु कहा कह्यो है नंदकुमार

बनारस: साहित्य-सेवा-सदन, पृष्ठ १६३

 

राग धनाश्री

ऊधो! जाय बहुरि सुनि आवहु कहा कह्यो है नंदकुमार।
यह न होय उपदेस स्याम को कहत लगावन छार॥
निर्गुन-ज्योति कहा उन पाई सिखवत बारम्बार।
काल्हिहि करत हुते हमरे अँग अपने हाथ सिंगार॥
ब्याकुल भए गोपालहि बिछुरे गयो गुनज्ञान सँभार।
तातें ज्यों भावै त्यों बकत हौ, नाही दोष तुम्हार॥
बिरह सहन को हम सिरजी हैं, पाहन हृदय हमार।
सूरदास अन्तरगति मोहन जीवन-प्रान-अधार॥२१७॥