भ्रमरगीत-सार/१९०-उधो नँदनंदन सों इतनी कहियो
उधो! नँदनंदन सों इतनी कहियो।
जद्यपि ब्रज अनाथ करि छाँड़्यो तदपि बार इक चित करि रहियो॥
तिनकातोरे[१] करौ जनि हमसों एक वास की लज्जा गहियो।
गुन-औगुनन रोष नहिं कीजत दासनिदासि की इतनी सहियो॥
तुम बिन स्याम कहा हम करिहैं यह अवलंब न सपने लहियो।
सूरदास प्रभु यह कहि पठई कहाँ जोग कहँ पीवन दहियो॥१९०॥
- ↑ तिनकातोर=नातातोड़, संबंध-त्याग।