भ्रमरगीत-सार/१८०-ऊधो तुम कहियो ऐसे गोकुल आवैं
ऊधो! तुम कहियो ऐसे गोकुल आवैं।
दिन दस रहे सो भली कीनी अब जनि गहरु लगावैं॥
तुम बिनु कछु न सुहाय प्रानपति कानन भवन न भावैं।
बाल बिलख, मुख गौ न चरत तृन, बछरनि छीर न प्यावैं॥
देखत अपनी आँखिन, ऊधो, हम कहि कहा जनावैं।
सूर स्याम बिनु तपति रैन-दिनु हरिहि मिले सचु पावैं॥१८०॥