तबहिं दवा[१] द्रुम दहन न पाये, अब क्यों देह जरी?
सुन्दरस्याम निकसि उर तें हम सीतल क्यों न करी?
इंद्र रिसाय बरस नयनन मग, घटत न एक घरी।
भीजत सीत भीत तन काँपत रहे, गिरि क्यों न धरी।
कर कंकन दर्पन लै दोऊ अब यहि अनख[२] मरी।
एतो मान सूर सुनि योग जु बिरहिनि बिरह धरी॥१७७॥