भ्रमरगीत-सार/१६७-पाती सखि! मधुबन तें आई

बनारस: साहित्य-सेवा-सदन, पृष्ठ १४८

 

राग सारंग
पाती सखि! मधुबन तें आई।

ऊधो-हाथ स्याम लिखि पठई, आय सुनौ, री माई!
अपने अपने गृह तें दौरीं लै पाती उर लाई।
नयनन नीर निरखि नहिं खंडित प्रेम न बिथा बुझाई॥
कहा करौं सूनो यह गोकुल हरि बिनु कछु न सुहाई।
सूरदास प्रभु कौन चूक तें स्याम सुरति बिसराई?॥१६७॥