भ्रमरगीत-सार/१५-देखो नंदद्वार रथ ठाढ़ो

भ्रमरगीत-सार
रामचंद्र शुक्ल

बनारस: साहित्य-सेवा-सदन, पृष्ठ ९१ से – ९२ तक

 

राग सोरठ
देखो नंदद्वार रथ ठाढ़ो।

बहुरि सखी सुफलकसुत[] आयो पज्यो सँदेह उर गाढ़ो॥
प्रान हमारे तबहिं गयो लै अब केहि कारन आयो।
जानति हौं अनुमान सखी री! कृपा करन उठि धायो।

इतने अंतर आय उपंगसुत तेहि छन दरसन दीन्हो।
तब पहिंचानि सखा हरिजू को परम सुचित तन कीन्हो॥
तब परनाम कियो अति रुचि सों और सबहि कर जोरे।
सुनियत रहे तैसेई देखे परम चतुर मति-भोरे[]
तुम्हरो दरसन पाय आपनो जन्म सफल करि जान्यो।
सूर ऊधो सों मिलत भयो सुख ज्यों झख पायो पान्यो[]॥१५॥

  1. सुफलकसुत=अक्रूर।
  2. भोरे=भोले।
  3. पान्यो=पानी। झख पायो पान्यो=मछली ने पानी पाया।