भ्रमरगीत-सार/१५६-मधुकर! ये नयना पै हारे

बनारस: साहित्य-सेवा-सदन, पृष्ठ १४४

 

राग नट
मधुकर! ये नयना पै हारे।

निरखि निरखि मग कमलनयन को प्रेममगन भए भारे॥
ता दिन तें नींदौ पुनि नासी, चौंकि परत अधिकारे।
सपन तुरी[] जागत पुनि सोई जो हैं हृदय हमारे॥
यह निगुन लै ताहि बतावो जो जानैं याके सारे।
सूरदास गोपाल छाँड़ि कै चूसैं टेटी[] खारे॥१५६॥

  1. तुरी=तुरीयावस्था।
  2. टेटी=करील का फल।