भ्रमरगीत-सार/१५२-मधुकर! कौन मनायो मानै

बनारस: साहित्य-सेवा-सदन, पृष्ठ १४२

 

राग धनाश्री
मधुकर! कौन मनायो मानै?

अबिनासी अति अगम अगोचर कहा प्रीति-रस जानै?
सिखवहु ताहि समाधि की बातें जैहैं लोग सयाने।
हम अपने ब्रज ऐसेहि बसिहैं बिरह-बाय-बौराने॥
सोवत जागत सपने सौंतुख[] रहिहैं सो पति माने।
बालकुमार किसोर को लीलासिंधु सो तामें साने॥
पर्‌यो जो पयनिधि बूंद अलप[] सो को जो अब पहिचाने?
जाके तन धन प्रान सूर हरि-मुख-मुसुकानि बिकाने॥१५२॥

  1. सौं तुख=सामने।
  2. अलप=अल्प, थोड़ा।