बनारस: साहित्य-सेवा-सदन, पृष्ठ १४१
फूँकि फूँकि हियरा सुलगावत उठि न यहाँ तें जात॥
जो उर बसत जसोदानंदन निगुन कहाँ समात?
कत भटकत डोलत कुसुमन को तुम हौ पातन पात?
जदपि सकल बल्ली बन बिहरत जाय बसत जलजात[१]।
सूरदास ब्रज मिले बनि आवै? दासी की कुसलात॥१५०॥