भ्रमरगीत-सार/१२-सुनियो एक सँदेसो ऊधो तुम गोकुल को जात

भ्रमरगीत-सार
रामचंद्र शुक्ल

बनारस: साहित्य-सेवा-सदन, पृष्ठ ९०

 

उद्धव प्रति कुब्जा के वाक्य
राग सारंग

सुनियो एक सँदेसो ऊधो तुम गोकुल को जात।
ता पाछे तुम कहियो उनसों एक हमारी बात॥
मात-पिता को हेत जानि कै कान्ह मधुपुरी आए।
नाहिंन स्याम तिहारे प्रीतम, ना जसुदा के जाए॥
समुझौ बूझौ अपने मन में तुम जो कहा भलो कीन्हो।
कह बालक, तुम मत्त ग्वालिनी सबै आप-बस कीन्हो॥
और जसोदा माखन-काजै बहुतक त्रास दिखाई।
तुमहिं सबै मिलि दाँवरि दीन्ही रंच[] दया नहिं आई॥
अरु वृषभानसुता जो कीन्ही सो तुम सब जिय जानो।
याही लाज तजी ब्रज मोहन अब काहे दुख मानो?
सूरदास यह सुनि सुनि बातैं स्याम रहे सिर नाई।
इत कुब्जा उत प्रेम ग्वालिनी कहत न कछु बनि आई॥१२॥

  1. रंच=तनिक, ज़रा भी।