भ्रमरगीत-सार/११८-ऊधो! कौन आहि अधिकारी

बनारस: साहित्य-सेवा-सदन, पृष्ठ १३२

 

राग सारंग
ऊधो! कौन आहि अधिकारी?

लै न जाहु यह जोग आपनो कत तुम होत दुखारी?
यह तो वेद उपनिषद मत है महापुरुष ब्रतधारी।
हम अहीरि अबला ब्रजबासिनि नाहिंन परत सँभारी॥
को है सुनत, कहत हौ कासों, कौन कथा अनुसारी?
सूर स्याम-सँग जात भयो मन अहि केंचुलि सी डारी॥११८॥