भारत का संविधान
अनुवादक
राजेन्द्र प्रसाद

पृष्ठ ९१ से – ९७ तक

 

 

भाग ११
संघ और राज्यों के सम्बन्ध
अध्याय १—विधायी सम्बन्ध
विधायिनी शक्तियों का वितरण

संसद् तथा राज्यों
के विधानमंडलों
द्वारा निर्मित
विधियों का विस्तार
२४५. (१) इस संविधान के उपबन्धों के अधीन रहते हुए संसद् भारत के सम्पूर्ण राज्य-क्षेत्र अथवा उस के किसी भाग के लिये विधि बना सकेगी, तथा किसी राज्य का विधानमंडल उस सम्पूर्ण राज्य के अथवा उस के किसी भाग के लिये विधि बना सकेगा।

(२) संसद् द्वारा निर्मित कोई विधि, इस कारण से कि उसका राज्य-क्षेत्रातीत प्रवर्तन होगा, अमान्य नही समझी जायेगी।

संसद् द्वारा तथा
राज्यों के विधान-
मंडलों द्वारा, निर्मित
विधियों के विषय
[]२४६. (१) खंड (२) और (३) में किसी बात के होते हुए भी संसद् को सप्तम अनुसूची की सूची (१) में (जो उस संविधान में "संघ-सूची" के नाम से निर्दिष्ट है) प्रगणित विषयों में से किसी के बारे में विधि बनाने की अनन्य शक्ति है।

(२) खंड (३) में किसी बात के होते हुए भी संसद् को, तथा खंड (१) के अधीन रहते हए, []*** किसी राज्य के विधानमंडल को भी, सप्तम अनसूची की सूची (३) में (जो इस संविधान में "समवर्ती-सूची" के नाम से निर्दिष्ट है) प्रगणित विषयों में से किसी के बारे में विधि बनाने की शक्ति है।

(३) खंड (१) और (२) के अधीन रहते हए []*** किसी राज्य के विधानमंडल को सप्तम अनुसूची की सूची (२) में (जो इस संविधान में "राज्य-सूची" के नाम से निर्दिष्ट है) प्रगणित विषयों में से किसी के बारे में ऐसे राज्य अथवा उस के किसी भाग के लिये विधि बनाने की अनन्य शक्ति है।

(४) संसद् को भारत राज्य-क्षेत्र के किसी भाग के लिये, [][जो किसी राज्य] के अन्तर्गत नहीं है, किसी भी विषय के बारे में विधि बनाने की शक्ति है चाहे फिर वह विषय "राज्य-सूची" में प्रगणित विषय क्यों न हो।

किन्हीं अपर न्याया-
लयों की स्थापना
का उपबन्ध करने
की संसद् की शक्ति
२४७. इस अध्याय में किसी बात के होते हुए भी संसद्-निर्मित विधियों के, अथवा किसी वर्तमान विधि के, जो संघ-सूची में प्रगणित विषय के बारे में है, अधिक अच्छे प्रशासन के लिये संसद् किन्हीं अपर न्यायालयों की स्थापना का विधि द्वारा उपबन्ध कर सकेगी।

 

भाग ११—संघ और राज्यों के सम्बन्ध
अनु॰—२४८—२५१

अवशिष्ट विधान
शक्तियां
[]२४८. (१) संसद् को ऐसे किसी विषय के बारे में, जो "समवर्ती-सूची" अथवा "राज्य-सूची" में प्रगणित नहीं है, विधि बनाने की अनन्य शक्ति है।

(२) ऐसी शक्ति के अन्तर्गत ऐसे करों के, जो उन सूचियों में से किसी में वर्णित नहीं है, आरोपण करने के लिये कोई विधि बनाने की शक्ति भी है।

राष्ट्रीय हित में
राज्य-सूची में के
विषय के बारे में
विधि बनाने की
संसद की शक्ति
[]२४९. (१) इस अध्याय के पूर्वगामी उपबन्धों में किसी बात के होते हुए भी, यदि राज्य-सभा ने उपस्थित और मत देने वाले सदस्यों की दो-तिहाई से अन्यून संख्या द्वारा समर्थित संकल्प द्वारा घोषित किया है कि राष्ट्रीय हित में यह आवश्यक तथा इष्टकर है कि संसद् राज्य-सूची में प्रगणित और उस संकल्प में उल्लिखित किसी विषय के बारे में विधि बनाये तो जब तक वह संकल्प प्रवृत्त है संसद् के लिये उस विषय के बारे में भारत के सम्पूर्ण राज्य-क्षेत्र अथवा उस के किसी भाग के लिये विधि बनाना विधि-संगत होगा।

(२) खंड (१) के अधीन पारित संकल्प एक वर्ष से अनधिक ऐसी कालावधि के लिये प्रवृत्त रहेगा जैसी कि उस में उल्लिखित हो :

परन्तु यदि, और जितनी बार, किसी ऐसे संकल्प को प्रवृत्त बनाये रखने का अनुमोदन करने वाला संकल्प खंड (१) में उपबन्धित रीति से पारित हो जाये तो ऐसा संकल्प उस तारीख से आगे, जिस को कि वह इस खंड के अधीन अन्यथा प्रवृत्त न रहता, एक वर्ष की और कालावधि तक प्रवृत्त रहेगा।

(३) संसद् द्वारा निर्मित कोई विधि, जिसे संसद् खंड (१) के अधीन संकल्प के पारण के अभाव में बनाने में सक्षम न होती, संकल्प के प्रवृत्त न रहने से छ:मास की कालावधि की समाप्ति पर अक्षमता की मात्रा तक उन बातों के अतिरिक्त प्रभावी न होगी जो उक्त कालावधि की समाप्ति से पूर्व की गई या की जाने से छोड़ दी गई हैं।

यदि आपात की
उद्घोषणा प्रवर्तन
में हो तो राज्य-
सूची में के विषयों
के बारे में विधि
बनाने की संसद
की शक्ति
[]२५०. (१) इस अध्याय में किसी बात के होते हुए भी संसद् को, जब तक आपात की उद्घोषणा प्रवर्तन में है, भारत के सम्पूर्ण राज्य-क्षेत्र के अथवा उस के किसी भाग के लिये राज्य-सूची में प्रगणित विषयों में से किसी के बारे में विधि बनाने की शक्ति होगी।

(२) संसद् द्वारा निर्मित विधि, जिसे संसद् आपात की उद्घोषणा के अभाव में बनाने में सक्षम न होती, उद्घोषणा के प्रवर्तन की समाप्ति के पश्चात छ: मास की कालावधि की समाप्ति पर अक्षमता की मात्रा तक उन सब बातों के अतिरिक्त प्रवर्तनहीन होगी जो उस कालावधि की समाप्ति से पूर्व की गई या की जाने से छोड़ दी गई हैं।

 

भाग ११—संघ और राज्यों के सम्बन्ध
अनु॰—२५१—२५३

अनुच्छेद २४९ और
२५० के अधीन
संसद् द्वारा निर्मित
विधियों तथा राज्यों
के विधानमंडलों
द्वारा निर्मित
विधियों में असंगति
[]२५१. इस संविधान के अनुच्छेद २४९ और २५० की कोई बात किसी राज्य के विधानमंडल की कोई विधि बनाने की शक्ति को, जिसे इस संविधान के अधीन बनाने की शक्ति उसे है, निर्बन्धित न करेगी किन्तु यदि किसी राज्य के विधानमंडल द्वारा निर्मित विधि का कोई उपबन्ध, संसद् द्वारा निर्मित विधि के, जिसे संसद् उक्त दोनों में से किसी अनुच्छेद के अधीन बनाने की शक्ति रखती है, किसी उपबन्ध के विरुद्ध है तो, संसद् द्वारा निर्मित विधि अभिभावी होगी चाहें वह राज्य के विधानमंडल द्वारा निर्मित विधि से पहिले या पीछे पारित हुई हो तथा राज्य के विधानमंडल द्वारा निर्मित विधि विरोध की मात्रा तक प्रवर्तन-शून्य होगी किन्तु तभी तक जब तक कि संसद् द्वारा निर्मित विधि प्रभावी रहे।

 

दो या अधिक
राज्यों के लिये
उनकी सम्मति से
विधि बनाने की
संसद् की शक्ति
तथा ऐसी विधि का
दूसरे किसी राज्य
द्वारा अंगीकार
किया जाना
२५२. (१) यदि किन्हीं दो अथवा अधिक राज्यों के विधानमंडलों को यह वांछनीय प्रतीत हो कि उन विषयों में से, जिन के बारे में संसद् को अनुच्छेद २४९ और २५० में उपबन्धित रीति के अतिरिक्त, उन गज्यों के लिये विधि बनाने की शक्ति नहीं है, किसी विषय का विनियमन ऐसे राज्यों में संसद् विधि द्वारा करे तथा यदि उन राज्यों के विधानमंडलों के सब सदनों ने उस लिये संकल्पों का पारण किया है तो उस विषय का तद‍्नुकूल विनियमन करने के लिये किसी अधिनियम का पारण करना संसद् के लिये विधि संगत होगा, तथा इस प्रकार पारित कोई अधिनियम ऐसे राज्यों को लागू होगा तथा किसी अन्य राज्य को, जो तत्पश्चात अपने विधानमंडल के सदन अथवा जहां दो सदन हों, वहां दोनों सदनों में में प्रत्येक में उस लिये पारित संकल्प द्वारा उस को अंगीकार करे, लागू होगा।

(२) संसद् द्वारा इस प्रकार पारित कोई अधिनियम इसी रीति से पारित या अंगीकृत संसद् के अधिनियम से संशोधित या निरसित किया जा सकेगा, किन्तु किसी राज्य के संबंध में, जहां कि वह लागू होता है, उस राज्य के विधानमंडल के अधिनियम से संशोधित या निरसित न किया जायेगा।

 

अन्तर्राष्ट्रीय करारों
के पालनार्थ विधान
[]२५३. इस अध्याय के पूर्वगामी उपबन्धों में से किसी बात के होते हुए भी, संसद् को किसी अन्य देश या देशों के साथ की हुई संधि, करार या अभिसमय अथवा किसी अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन, संस्था या अन्य निकाय में किये गये किसी विनिश्चय के परिपालन के लिये भारत के सम्पूर्ण राज्य-क्षेत्र या उस के किसी भाग के लिये कोई विधि बनाने की शक्ति है।

 

भाग ११—संघ और राज्यों के सम्बन्ध
अनु॰—२५४—२५५

संसद् द्वारा निर्मित
विधियों और
राज्यों के विधान-
मंडलों द्वारा
निर्मित विधियों में
असंगति
[]२५४. (१) यदि किसी राज्य के विधानमंडल द्वारा निर्मित विधि का कोई उपबन्ध संसद् द्वारा निर्मित विधि के, जिसे संसद् अधिनियमित करने के लिये सक्षम है, किसी उपबन्ध, अथवा समवर्ती सूची में प्रगणित विषयों में से एक के बारे में वर्तमान विधि के, किसी उपबन्ध के विरुद्ध है तो खंड (२) के उपबन्धों के अधीन रहते हुए यथास्थिति संसद् द्वारा निर्मित विधि, चाहे वह ऐसे राज्य के विधानमंडल द्वारा निर्मित विधि के पहिले या पीछे पारित हुई हो या वर्तमान विधि अभिभावी होगी, तथा उस राज्य के विधानमंडल द्वारा निर्मित विधि विरोध की मात्रा तक शून्य होगी।

(२) जहां []*** राज्य के विधानमंडल द्वारा निर्मित विधि में, जो समवर्ती सूची में प्रगणित विषयों में से एक के बारे में है, कोई ऐसा उपबन्ध अन्तर्विष्ट हो जो संसद् द्वारा पहिले निर्मित की गई विधि के, अथवा उस विषय के बारे में किसी वर्तमान विधि के विरुद्ध है तो ऐसे राज्य के विधानमंडल द्वारा उस प्रकार निर्मित विधि उस राज्य में अभिभावी होगी यदि उस को राष्ट्रपति के विचारार्थ रक्षित किया गया है और उस पर उस की अनुमति मिल चुकी है :

परन्तु इस खंड की कोई बात संसद् को, किसी समय उसी विषय के संबंध में कोई विधि, जिस के अन्तर्गत ऐसी विधि भी है जो राज्य के विधानमंडल द्वारा इस प्रकार निर्मित विधि का परिवर्धन, संशोधन, परिवर्तन या निरसन करती है, अधिनियमित करने से न रोकेगी।

सिपारिशों और
पूर्व मंजूरी की
अपेक्षाओं को
केवल प्रक्रिया का
विषय मानना
[]२५५. यदि संसद् के, अथवा []* * * किसी राज्य के विधानमंडल के किसी अधिनियम को–

(क) जहां राज्यपाल की सिपारिश अपेक्षित थी वहां राज्यपाल या राष्ट्रपति ने,
(ख) जहां राजप्रमुख की सिपारिश अपेक्षित थी वहां राजप्रमुख या राष्ट्रपति ने,
(ग) जहां राष्ट्रपति की सिपारिश या पूर्व मंजूरी अपेक्षित थी वहां राष्ट्रपति ने,

अनुमति दी है तो ऐसा अधिनियम तथा ऐसे किसी अधिनियम का कोई उपबन्ध केवल इस कारण से अमान्य न होगा कि इस संविधान द्वारा अपेक्षित कोई सिपारिश न की गई या पूर्व मंजूरी न दी गई थी।

भाग ११—संघ और राज्यों के सम्बन्ध—
अनु॰ २५६—२५७

अध्याय २.—प्रशासन-सम्बन्ध
साधारण

संघ और राज्यों
के आभार
[१०]२५६. प्रत्येक राज्य की कार्यपालिका शक्ति का इस प्रकार प्रयोग होगा, कि जिससे संसद् द्वारा निर्मित विधियों का, तथा किन्हीं वर्तमान विधियों का, जो उस राज्य में लागू हैं, पालन सुनिश्चित रहे तथा संघ की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार किसी राज्य को ऐसे निदेश देने तक विस्तृत होगा जो कि भारत सरकार को उस प्रयोजन के लिये आवश्यक दिखाई दें।

किन्हीं अवस्थाओं
में राज्यों पर संघ
का नियंत्रण
२५७. (१) प्रत्येक राज्य की कार्यपालिका शक्ति का इस प्रकार प्रयोग होगा कि जिस से संघ की कार्यपालिका शक्ति के प्रयोग में कोई अड़चन या प्रतिकूल प्रभाव न हो तथा संघ की, कार्यपालिका शक्ति का विस्तार किसी राज्य को ऐसे निदेश देने तक विस्तृत होगा जो भारत सरकार को उस प्रयोजन के लिये आवश्यक दिखाई दें।

(२) संघ की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार राज्य को किसी ऐसे संचार-साधनों के निर्माण करने और बनाये रखने के लिये निदेश देने तक भी विस्तृत होगा जिनका राष्ट्रीय या सैनिक महत्व का होना उस निदेश में घोषित किया गया हो :

परन्तु इस खंड की कोई बात राज-पथों या जल-पथों को राष्ट्रीय राज-पथ या राष्ट्रीय जल-पथ घोषित करने की संसद की शक्तियों, अथवा इस प्रकार घोषित राज-पथ या जल-पथ के बारे में संघ की शक्ति को, अथवा नौ-बल, स्थल-बल, और विमान-बल कर्मशालाओं विषयक अपने कृत्यों का भाग मान कर संचार साधनों के निर्माण और बनाये रखने की संघ की शक्ति को निर्बन्धित करने वाली न मानी जायेगी।

(३) किसी राज्य में की रेलों की रक्षा के लिये किये जाने वाले उपायों के बारे में उस राज्य को निदेश देने तक भी संघ की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार होगा।

(४) जहां खंड (२) के अधीन संचार-साधनों के निर्माण अथवा उनको बनाये रखने के बारे में अथवा खंड (३) के अधीन किसी रेल की रक्षा के लिये किये जाने वाले उपायों के बारे में, किसी राज्य को दिये गये किसी निदेश के पालन में उस से अधिक खर्च होता है जो, यदि ऐसा निदेश नहीं दिया गया होता तो, राज्य के मामूली कर्तव्यों के पालन में खर्च होता, वहां उस राज्य द्वारा किये गये अतिरिक्त खर्चों के बारे में भारत सरकार द्वारा उस राज्य को ऐसी राशि दी जायेगी जो करार पाई जाये अथवा, करार के अभाव में, जिसे भारत के मुख्य न्यायाधिपति द्वारा नियुक्त मध्यस्थ निर्धारित करे।

भाग ११—संघ और राज्यों के सम्बन्ध—
अनु॰ २५८—२६१

कतिपय
अवस्थाओं में राज्यों
को शक्ति आदि
देने की संघ
की शक्ति
२५८. (१) इस संविधान में किसी बात के होते हुए भी किसी राज्य की सरकार की सम्मति से राष्ट्रपति, उस सरकार को या उस के पदाधिकारियों को ऐसे किसी विषय संबंधी कृत्य, जिन पर संघ की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार है, शर्तों के साथ या बिना शर्त सौंप सकेगा।

(२) ऐसे विषय से, जिस के बारे में राज्य के विधानमंडल को विधि बनाने की शक्ति नहीं है, सम्बद्ध होने पर भी संसद्-निर्मित विधि, जो किसी राज्य में लागू है, उस राज्य अथवा उस के पदाधिकारियों और प्राधिकारियों को शक्ति दे सकेगी और कर्तव्य आरोपित कर सकेगी अथवा शक्तियां दिया जाना और कर्तव्य आरोपित किया जाना प्राधिकृत कर सकेगी।

(३) जहां इस अनुच्छेद के आधार पर किसी राज्य अथवा उस के पदाधिकारियों या प्राधिकारियों को शक्तियां दी गई हैं, अथवा कर्तव्य आरोपित कर दिये गये हैं वहां उन शक्तियों और कर्तव्यों के प्रयोग के बारे में राज्य द्वारा प्रशासन में किये गये अतिरिक्त खर्चों के बारे में भारत सरकार द्वारा उस राज्य को ऐसी राशि दी जायेगी जो करार पाई जाये अथवा, करार के अभाव में, जिसे भारत के मुख्य न्यायाधिपति द्वारा नियुक्त मध्यस्थ निर्धारित करे।

संघ को कृत्य
सौंपने की राज्यों
की शक्ति
[११][२५८क. इस संविधान में किसी बात के होते हुए भी भारत सरकार की सम्मति से किसी राज्य का राज्यपाल उस सरकार को या उस के पदाधिकारियों को ऐसे किसी विषय संबंधी कृत्य जिन पर, उस राज्य की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार है, शर्तों के साथ या शर्त बिना सौंप सकेगा।]

२५९. [प्रथम अनुसूची के भाग (ख) में के राज्यों के सशस्त्र बल] संविधान (सप्तम संशोधन) अधिनियम, १९५६, धारा २९ और अनुसूची द्वारा निरसित।

भारत के बाहर
के राज्य-क्षेत्रों के
सम्बन्ध में संघ का
क्षेत्राधिकार
२६०. भारत सरकार किसी ऐसे राज्य-क्षेत्र की सरकार से, जो भारत राज्य-क्षेत्र का भाग नहीं है, करार कर के ऐसे राज्य-क्षेत्र की सरकार में निहित किसी कार्यपालक, विधायी या न्यायिक कृत्यों को ग्रहण कर सकेगी किन्तु प्रत्येक ऐसा करार विदेशी क्षेत्राधिकार के प्रयोग से सम्बद्ध किसी तत्समय प्रवृत्त विधि के अधीन रहेगा और उससे शासित होगा।

 

सार्वजनिक क्रिया
अभिलेख और
न्यायिक कार्यवाहियाँ
२६१. (१) भारत के राज्य-क्षेत्र में सर्वत्र, संघ की और प्रत्येक राज्य की, सार्वजनिक क्रियाओं, अभिलेखों और न्यायिक कार्यवाहियों को पूरा विश्वास और पूरी मान्यता दी जायेगी।

[१२](२) खंड (१) में निर्दिष्ट क्रियाओं, अभिलेखों और कार्यवाहियों की सिद्धि की रीति और शर्तें तथा उन के प्रभाव का निर्धारण संसद्-निर्मित विधि द्वारा उपबन्धित रीति के अनुसार होगा।

(३) भारत राज्य-क्षेत्र के किसी भाग में के व्यवहार न्यायालयों द्वारा दिये गये अन्तिम निर्णय या आदेश उस राज्य-क्षेत्र के अन्दर कहीं भी विधि अनुसार निष्पादन योग्य होंगे।

भाग ११—संघ और राज्यों के सम्बन्ध—
अनु॰ २६२—२६३

जल सम्बन्धी विवाद

अन्तर्राज्यिक
नदियों या नदी
-दूनों के जल
संबन्धी वादों का
न्यायनिणयन
२६२. (१) संसद् विधि द्वारा किसी अन्तर्राज्यिक नदी या नदी-दून के, या में, जलों के प्रयोग, वितरण, या नियंत्रण के बारे में किसी विवाद या फरियाद के न्याय-निर्णयन के लिये उपबन्ध कर सकेगी

(२) इस संविधान में किसी बात के होते हुए भी संसद् विधि द्वारा उपबन्ध कर सकेगी कि न तो उच्चतमन्यायालय और न अन्य कोई न्यायालय खंड (१) में निर्दिष्ट किसी विवाद या फरियाद के बारे में क्षेत्राधिकार का प्रयोग करेगा।

राज्यों के बीच समन्वय

अन्तर्राज्य-परिषद्
विषयक उपबन्ध
२६३. यदि किसी समय राष्ट्रपति को यह प्रतीत हो कि ऐसी परिषद् की स्थापना से लोक-हितों की सिद्धि होगी, जिस पर–

(क) राज्यों के बीच जो विवाद उत्पन्न हो चुके हों उन की जांच करने और उन पर मंत्रणा देने;
(ख) कुछ या सब राज्यों के, अथवा संघ और एक या अधिक राज्यों के, पारस्परिक हित से सम्बद्ध विषयों का अनुसंधान और चर्चा करने, अथवा
(ग) ऐसे किसी विषय पर सिपारिश करने, और विशेषत: उस विषय के बारे में नीति और कार्यवाही के अधिकतर अच्छे समन्वय के हेतु सिपारिश करने,

का भार हो तो राष्ट्रपति के लिये यह विधि-संगत होगा कि वह आदेश द्वारा ऐसी परिषद् की स्थापना करे तथा उस परिषद् के द्वारा किये जाने वाले कर्तव्यों के स्वरूप को और उसके संघटन और प्रक्रिया को परिभाषित करे।

  1. जम्मू और कश्मीर राज्य को लागू होने में अनुच्छेद २४६ में खंड (१) "खंड (२) और (३) में किसी बात के होते हुए भी" शब्द, कोष्ठक और अंक तथा "खंड (२), (३) और (४) लुप्त कर दिये जायेंगे।
  2. २.० २.१ २.२ २.३ "प्रथम अनुसूची के भाग (क) या भाग (ख) में उल्लिखित" शब्द और अक्षर संविधान (सप्तम संशोधन) अधिनियम, १९५६, धारा २९ और अनुसूची द्वारा लुप्त कर दिये गये।,
  3. संविधान (सप्तम संशोधन) अधिनियम, १९५६, धारा २९ और अनुसूची द्वारा "जो प्रथम अनुसूची के भाग (क) या भाग (ख)" के स्थान पर रखे गये।
  4. ४.० ४.१ अनुच्छेद २४८ और २४९ जम्मू और कश्मीर राज्य को लागू न होंगे।,
  5. जम्मू और कश्मीर राज्य को लागू होने में अनुच्छेद २५० में "राज्य-सूची में प्रगणित विषयों में से किसी के बारे में" शब्दों के स्थान पर "संघ-सूची में प्रगणित न किये गये विषयों के बारे में भी" शब्द रख दिये जाएंगे।
  6. जम्मू और कश्मीर राज्य को लागू होने में अनुच्छेद २५१ में "अनुच्छेद २४९ और २५०" शब्दों और अंकों के स्थान पर "अनुच्छेद २५०" शब्द रख दिये जाएंगे, और "इस संविधान के अधीन" शब्द लुप्त कर दिये जाएंगे, और "उक्त दोनों में से किसी अनुच्छेद के अधीन" शब्दों के स्थान पर "उक्त अनुच्छेद के अधीन" शब्द रख दिये जाएंगे।
  7. जम्मू और कश्मीर राज्य को लागू होने में अनुच्छेद २५३ में निम्नलिखित परन्तुक जोड़ दिया जायेगा, अर्थात्–
    "परन्तु संविधान (जम्मू और कश्मीर को लागू होना) आदेश १९५४ के आरम्भ के पश्चात् जम्मू और कश्मीर राज्य के व्ययन को प्रभावित करने वाला कोई विनिश्चय भारत सरकार द्वारा उस राज्यों की सरकार की सम्मति के बिना नहीं किया जाएगा।"
  8. जम्मू और कश्मीर राज्य को लागू होने में अनुच्छेद २५४ के खंड (१) में "किसी उपबन्ध, अथवा समवर्ती-सूची में प्रगणित विषयों में से एक के बारे में वर्तमान विधि के, किसी उपबन्ध के विरुद्ध है तो खंड (२) के उपबन्धों के अधीन रहते हुए यथास्थिति" शब्द, कोष्ठक और अंकों के स्थान पर "किसी उपबन्ध के विरुद्ध है तो" शब्द रख दिये जायेंगे और "या वर्तमान विधि" शब्द लुप्त कर दिये जायेंगे और सम्पूर्ण खंड (२) लुप्त कर दिया जायेगा।
  9. अनुच्छेद २५५ जम्मू और कश्मीर राज्य को लागू न होगा।
  10. जम्मू और कश्मीर राज्य को लागू होने में अनुच्छेद २५६ को अपने खंड (१) के रूप में पुनः संख्यांकित किया जाएगा और उस में निम्नलिखित नया खंड जोड़ दिया जाएगा, अर्थात्–
    "(२) जम्मू और कश्मीर राज्य अपनी कार्यपालिका शक्ति का ऐसे प्रयोग करेगा जिस से कि उस राज्य के संबंध में संविधान के अधीन संघ के कर्तव्यों और उत्तरदायित्वों का संघ द्वारा निर्वहन सुगम हो; और विशेषतया उक्त राज्य, संघ द्वारा वैसी अपेक्षा किये जाने पर, संघ की ओर से और उस के व्यय पर सम्पत्ति का अर्जन या अधिग्रहण करेगा अथवा यदि सम्पत्ति उस राज्य की है तो ऐसे निबन्धनों पर, जैसे कि करार पाये जाएं या करार के अभाव में जैसे कि भारत के मुख्य न्यायाधिपति द्वारा नियुक्त मध्यस्थ द्वारा निर्धारित किये जाएं, संघ को हस्तांतरित करेगा।"
  11. संविधान (सप्तम संशोधन) अधिनियम १९५६, धारा १८ द्वारा अन्तःस्थापित।
  12. जम्मू और कश्मीर राज्य को लागू होने में अनुच्छेद २६१ के खंड (२) में "संसद् निर्मित" शब्द लुप्त कर दिये जायेंगे।