भारतवर्ष का इतिहास/६—श्रीरामचन्द्र जी की कथा

भारतवर्ष का इतिहास
ई॰ मार्सडेन

कलकत्ता, बंबई, मद्रास, लंदन: मैकमिलन एंड कंपनी लिमिटेड, पृष्ठ ३० से – ३५ तक

 
६—श्रीरामचन्द्र जी की कथा।

१—रामायण में श्रीरामचन्द्र जी का चरित लिखा है। अयोध्या के राजा दशरथ की तीन रानियां थीं। जेठी रानी का नाम कौशल्या और सब से छोटी का कैकेयी था। कौशल्या के लड़के श्रीरामचन्द्र थे और वह ही राज्य के उत्तराधिकारी थे। पर राजा दशरथ कैकेयी को जो सब से छोटी और परम सुन्दरी थी, बहुत मानते थे और मानो उन्हीं के हाथ बिकेसे थे। कैकेयी की यह इच्छा थी कि उनका बेटा भरत राज पावे। मझली रानी सुमित्रा के भी दो लड़के लक्ष्मण और शत्रुघ्न थे।

२—राजा के बड़े बेटे राम सारे देश में वीरता और पराक्रम में अद्वितीय थे। वह सुशील और सत्यप्रिय थे। अवधवासी उनको देख देख कर जीते थे। राजा भी उन पर और बेटों से अधिक स्नेह रखते थे और उन्हीं को राजतिलक देना भी चाहते थे।

३—अवध से दूर पूर्व की ओर गंडक नदी के पार मिथिला का राज था। वहां के राजा महाराज जनक की सीता नाम की एक बेटी बड़ी रूपवती थी। बड़े बड़े राजकुमारों ने उसके साथ विवाह के सन्देसे भेजे थे। पिताने बेटी को अधिकार दे दिया था कि वह अपना वर आप चुन ले, इसलिये स्वयम्बर रचने का विचार किया गया और इस बात को चरचा चारों ओर फैल गई। राजा जनक को अपने पुरखों से एक बहुत बड़ा धनुष मिला था जो कि बहुत कड़ा था। सीता ने कहा कि जो कोई इस धनुष को तोड़ देगा वहीं मेरा पति होगा। झुंड के झुंड राजा मिथिला में आ उपस्थित हुए। एक एक करके सबने ज़ोर लगाया परन्तु कोई उस धनुष को न तोड़ सका। धनुष इतना भारी था कि बहुतेरों से तो हिला भी नहीं। परन्तु जब राम की बारी आई तो उन्हों ने सहज ही उसे

राम धनुर्विद्या शिक्षण।

तोड़ डाला। सीता ने उसी समय फूलों की माला उनके गले में डाल दी, जिसका आशय यह था कि राम ही मेरे बर हैं। फिर बड़ी धूम धाम के साथ उन का बिवाह हो गया और अयोध्या में आकर महाराज दशरथ के महलों में सुख से दिन बिताने लगे।

४—कुछ दिन पीछे महाराज दशरथ को बुढ़ापे ने आ दबाया मानों यह दिखाई देने लगा कि अब हम कुछही दिनों के पाहुने हैं और वह समय आ गया कि कोई युवराज नियत किया जाय जो राज के काम काज में बढ़े राजा को सहायता करे और उसके पीछे उसकी जगह राज करे। सब यही चाहते थे कि राम युवराज हों। प्रधान मन्त्री सभासद और नगर के छोटे बड़े सब राम की बड़ाई करते थे। महाराज दशरथ ने इस सर्वप्रिय राजकुमार को बुलाया और कहा कि कल तुम युवराज बनाये जाओगे। नगर में रागरंग होने लगा, क्योंकि नगरवासी राम को जी जान से चाहते थे।

५—कैकेयी को जब समाचार मिला तो वह आग बगूला हो गई। अपने कपड़े फाड़ डाले, गहने उतार कर फेंक दिये, धरती पर लोट गईं और जब राजा आये तो उनसे मुंह से भी न बोलीं। बूढ़ा राजा कैकेयी के हाथ तो बिका हुआ ही था, उसने कैकेयी के कहने से यह मान लिया कि भरत युवराज हों और राम चौदह बरस का बनवास भोगें।

६—राजा दशरथ ने प्रतिज्ञा तो कर ली पर पीछे बहुत पछताये क्योंकि अपने प्यारे बेटे को देश बाहर करने का बिचार उन्हें काटे खाता था। अवध के लोग जो वीर और बुद्धिमान रामचन्द्र को जी से चाहते थे बहुत बिगड़े। कौशल्या ने राम को समझाया कि तुम बन को न जाओ पर राम ने एक न सुनी और कहा कि पहिले तो पिता कैकेयी को बचन दे चुके हैं दूसरे यह कि बेटे का धर्म है कि पिता की आज्ञा पालन करे। राम चाहते थे कि अकेले ही बन को चले जायं पर सीता ने कहा कि मैं यहां तुम्हारे बिना रहना नहीं चाहती, स्त्री का धर्म यह है कि जहां पति रहे वहीं उसकी सेवा में रहे चाहे घर में हो चाहे बनवास में हो। लक्ष्मण भी भाई का साथ छोड़ना नहीं चाहते थे और उनके साथ बन को चले।

७—राम सीता और लक्ष्मण यमुना से दक्षिण के बनों में चले गये और चलते चलते विन्ध्याचल के दक्षिण मध्य भारत के प्रसिद्ध दंडक बन में जा पहुंचे। इनके घर छोड़ने के थोड़े ही दिन पीछे राजा दशरथ परलोक सिधारे। कैकेयी ने बिचारा कि मेरा बेटा भरत राज करेगा। परन्तु भरत सत्यव्रत और सत्यप्रिय थे और राम से बड़ा सनेह रखते थे; पिता के देहान्त के पीछे राम की खोज में चले और उनसे बड़ी बिनती की कि आप घर लौट चलें और अवध में राज करें परन्तु राम ने उनकी बात न मानी और कहने लगे कि पिताने मुझे चौदह बरस के बनवास की आज्ञा दी है और मैंने उनकी आज्ञा मान ली है। राजकुमार अपने बचन से नहीं फिरा करते हैं। जब तक चौदह बरस न बीत जायं तब तक मैं अवध में पैर नहीं रख सकता। भरत को उलटे पैर लौट आना पड़ा। उन्हों ने राज पाट को अपना नहीं जाना और रामचन्द्र जी की खड़ाऊं गद्दी पर रख दी। इस का अभिप्राय यह था कि राज के असली मालिक रामचन्द्र जी हैं और उनके लौट आने तक उनकी जगह राज का काम काज और प्रजा का पालन करता रहूंगा।

८—कई बरस तक रामचन्द्र जी बनों में फिरते रहे। राम और लक्ष्मण प्रति दिन आखेट को जाया करते थे। एक दिन उनके पीछे एक बड़ा बली राजा रावण जो दक्षिणीय भारत के कुछ भाग पर राज करता था सीता जी की सुन्दरता का बखान सुनकर अकेले में

श्रीराम, सीता और लक्ष्मण गङ्गा उतर रहे हैं

कुटी में आया और उन को उठा कर लंका में जिसको अब सीलोन कहते हैं, अपने घर ले गया। वहां फुसला कर और धमका कर रावण ने चाहा कि सीता को अपनी रानी बनावे पर उस पतिव्रताने उसकी ओर आंख उठा कर भी न देखा। रावण ने उन को एक घने बाग में अलग बन्द कर दिया और सिपाहियों का पहरा बैठा दिया।

९—राम लक्ष्मण ने पश्चिमीय घाट के प्रतापी राजा सुग्रीव से मित्रता करली। सुग्रीव ने बहुत बड़ी सेना देकर अपने सेनापति हनुमान को राम की सहायता के लिये भेजा। हनुमान की सहायता से राम लक्ष्मण लङ्का पहुंचे, रावण को मारा और सीता जी को छुड़ा कर कुशल पूर्वक ले आये।

१०—इसी समय बनवास की अवधि भी पूरी हुई। राम लक्ष्मण सीता जी समेत अवध में आये। बहुत दिनों तक रामचन्द्र जी ने राज किया। प्राचीन समय के राजाओं में यह राजा बड़े प्रसिद्ध हुए हैं। इन्हें हिन्दू परमेश्वर का अवतार मानकर पूजते हैं। सीता जी से इन के दो पुत्र थे कुश और लव। राजपूतों के दो बड़े परिवार जिनका बर्णन आगे किया जायगा अपने को लव और कुश की सन्तान बताते हैं।