भारतवर्ष का इतिहास/१९—मुसलमान
१—अरब देश का बहुत बड़ा भाग ऊसर और बंजर है। यहां न नदी है न झील। सारा देश रेत से ढका है। कहीं कहीं हरा भरा टुकड़ा भी मिल जाता है जहां घास उगती है और कुंए या सोतों से पानी मिल जाता है। अगले समय में इस देश में
जंगली जातियां बसी थीं और वह अपने रेवड़ां और गल्लों के लिये घास चारे की खोज में घर बार साथ लिये एक जगह से दूसरी जगह और दूसरी जगह से तीसरी जगह फिरा करती थीं।
लोग सब जंगली थे। एक दूसरे से लड़ा करते थे। इनके आचार व्यवहार भी बुरे और पशुओं के से थे।
२—ईसा से अनुमान ६०० बरस पीछे अरब में एक नबी (ईश्वर के दूत) प्रगट हुए। इनका नाम महम्मद था। अरब देशवालों के बुरे आचार देख कर इनका जी बहुत कुढ़ा और उनके सुधारने के लिये उनसे जो कुछ हो सका इन्होंने किया। इनका उपदेश यह था कि ईश्वर एक है, मूर्तिपूजा पाप है, आपस में लड़ना बुरा है। पहिले तो अरबवालों ने इनकी बात ध्यान से न सुनी और उनको मारने के बिचार में रहे पर कुछ दिन बीतने पर उनका द्वेष कम हो गया। बहुतेरों ने अपनी मूर्तियां तोड़ डाली और पैग़म्बर साहब के साथ हो गये।
३—अरब के जो कुल अपने पुराने आचार छोड़ना न चाहते थे उन्हों ने महम्मद साहब और उनके अनुगामियों को बहुत सताया पर अन्त को वह भी परास्त हो गये और ६३२ ई॰ तक जिस साल महम्मद साहब का अन्तकाल हुआ सारा देश उनके बस में हो गया। जिस धर्म का प्रचार महम्मद साहब ने किया उसको इसलाम कहते हैं और इस धर्म पर चलनेवाले मुसलमान या मुसलिम कहलाते हैं। मुसलमान अपने कुरान को परम पवित्र आकाश से उतरी किताब मानते हैं और कहते हैं कि इसलाम धर्म का प्रचार ६२२ ई॰ से हुआ जब महम्मद साहब मक्के से मदीने चले गये थे। इस प्रवास को हिजरा या हिजरत कहते हैं और हिजरी सन तभी से शुरू होता है। मुसलमानों का बिश्वास है कि ईश्वर एक है महम्मद साहब उसके दूत हैं। ईश्वर के सामने सब मुसलमान बराबर हैं और भाई भाई हैं। इसलाम में हिन्दुओं की सी जातिपांत नहीं है।
४—जब अरब के सब रहनेवाले मुसलमान हो गये और एक हाकिम के आधीन हो गये तो उनकी एक बड़ी प्रबल जाति बन गई। आपस में लड़ना कटना बन्द हो गया था तौभी बड़े बीर लड़ाके थे। इसलाम दीन से उनके मन में बड़ा उत्साह हो गया और यह समाया कि और देशों में अपने धर्म का प्रचार करें। जो लोग खुशी से मुसलमान हो जायं उनको भाई समझें और उनके साथ अच्छा बरताव करें। ईश्वर धर्म की लड़ाई (जिहाद) से खुश होता है और जो मुसलमान जिहाद में मारे जाते हैं वह सीधे बिहिश्त (वैकुंठ) जाते हैं। और जो लोग आधीन होने पर अपना धर्म न बदलैं उन्हें एक महसूल देना पड़ता है जिसका नाम जिज़िया है।
५—अरबवाले पहिले उन देशों की ओर चले जो उनके उत्तर थे और उन्हें सहज ही जीत लिये। लट खसोट का बहुत सा धन उनके हाथ लगा तो उनको यह चाह हुई कि और देश जीतें। परिणाम यह हुआ कि देश पर देश जीत लिये गये और सौ बरस के भीतर फ़ारस, तुर्किस्तान, अफ़ग़ानिस्तान और आस पास के सारे देश जो दारा और अफ़रासियाब के आधीन थे उनके बस में आ गये और उनके रहनेवाले मुसलमान हो गये।
६—फ़ारस में कुछ लोग ऐसे भी थे जो अरबवालों के आधीन न हुए और न जिन्हों ने इसलाम धर्म अङ्गीकार किया और फ़ारस से निकल कर भारतवर्ष में चले आये। यह लोग १२०० बरस से यहीं बसे हैं और पारसी कहलाते हैं और पुराने आर्यों की तरह आग को परमेश्वर की ज्योति समझते हैं। पारसी बम्बई हाते में समुद्र के तीर नगरों में रहते हैं; बड़े नेक शांति चाहनेवाले और चतुर व्यापारी हैं और धर्म और देशहित में बहुत सा धन खर्च करते हैं।
७ॉ—जो देश हिन्दुस्थान के उत्तर थे उनमें भी अरबवालों ने लूट पाट शुरू की और फ़ारस और तातारवालों को इतना अवकाश न दिया कि हिन्दुस्थान पर धावा मारें। इस कारण कई सौ बरस तक हिन्दुस्थान इनकी चढ़ाइयों से बचा रहा।