बेकन-विचाररत्नावली  (1899) 
द्वारा महावीरप्रसाद द्विवेदी
[ भूमिका ]
भूमिका।

लार्ड बेकन का जन्म, लण्डन नगर में, २२ जनवरी सन् १५६१ ई॰ को हुआ। १३ वर्षके वयमें बेकनने ट्रीनिटी कालेज में प्रवेश किया। वहां वह थोड़ेही दिन रह सका; उसको उस समय की शिक्षण-पद्धति पसन्द नहीं आई। कालेज छोड़ने पर बेकन ने फ्रांस, इटली, इत्यादि देशोंमें पर्य्यटन करनेके लिए प्रस्थान किया और कई वर्षतक वहीं घूमता रहा। बेकन विदेशहीमें था जब उसको उसके पिताके मरने का समाचार मिला। इस समाचार को सुनकर वह इङ्गलैण्ड को लौट आया।

स्वदेशमें आकर बेकन ने कानून का अभ्यास किया और कुछ दिन तक वह विकालत करता रहा। परन्तु २६ वर्षके वयमें विकालत छोड़कर वह सरकारी नौकरी करने लगा। सरकारी नौकरी उसको यहांतक फलप्रद हुई कि सन् १६१२ ई॰ में वह मुख्य न्यायाधीशके पदपर नियुक्त किया गया। जिस समय बेकन इस पदपर था, उस समय, उसको उत्कोच लेने का अपराध लगाया गया, जिसे उसने स्वयं स्वीकारभी करलिया। इस लिए उसको दंड मिला; परन्तु राजाकी उसपर विशेष कृपाथी, अतएव पीछे से उसका अपराध क्षमा कर दियागया। बेकनकी अलौकिक विद्वत्तामें यह एक धब्बा लगगया है। इससे यह बात सिद्ध होती है, कि विद्वान् भी कभी कभी नीतिपराङ्मुख होजाते हैं।

बेकनकी माता एक विदुषी स्त्रीथी। उसके संसर्गसे बेकन को लड़कपनहीसे विद्याकी विशेष आभिरुचि होगई थी। बेकनकी विद्वत्ता अद्वितीयथी। दर्शनशास्त्र की ओर उसकी विशेष प्रवृत्ति थी। तत्त्वज्ञानसम्बन्धी विचारोंने, इस समय अंगरेजीमें [ भूमिका ] जो रूप धारण किया है, वह बेकनहीकी विशाल प्रतिभाका फल है। "इन्डक्लिव फिलासफी" का अङ्कुर यदि बेकन न जमाता तो उस विज्ञानको एतादृश रूपान्तर कदापि न प्राप्त होता। बेकनने विज्ञान सम्बन्धी कई उत्तमोत्तम ग्रन्थ लिखे हैं। उसकी मृत्यु सन् १६२८ ई॰ में हुई।

अपने वयके ३७ वें वर्षमें बेकनने प्रथमही प्रथम अपने 'निबन्ध' प्रकाशित किए। ये निबन्ध लोगोंको इतने अच्छे लगे कि, बेकनके जीवन कालहीमें इनका अनुवाद लैटिन, फ्रेंच, इटालियन इत्यादि भाषाओंमें होगया। अंगरेज विद्वान् इन निबन्धोंको बहुत आदरदृष्टि से देखते हैं और बेकनके कथनका समय समयपर, वार्त्तालाप करनेमें, दृष्टान्त दिया करते हैं। इन निबन्धोंकी उपयोगिता और श्रेष्ठताका अनुमान इतनेहींसे करना चाहिए कि ये इलाहाबादयूनीवरसिटीके यम० ए० कोर्समें हैं।

बेकनको जैसे जैसे विचार सूझते गए हैं, वैसेही वैसे वह लिखता गया है। प्रत्येक विषयका, एकहीसाथ, साद्यन्त विवेचन उसने नहीं किया। इसीसे इन निबन्धोंके आरम्भ और समाप्तिमें पूरी पूरी एकसूत्रता और समता नहीं है। बेकनके विचार बड़े गहन हैं। उसके निबन्ध पढ़नेसे, इस बातका अनुभव पद पद पर होता है।

बेकनने सब ५८ निबन्ध लिखे हैं; उनमेंसे केवल ३६ का हमने अनुवाद किया है; शेष २२ निबन्धोंका विषय बहुशः ऐसा है जो एतद्देशीयजनोंको ताद्दश रोचक नहीं है; इसी लिए हमने उनको छोड़ दिया है। ये निबन्ध जिस भाषामें हैं वह कुछ कुछ प्राचीन अंगरेजी भाषासे मिलती है; अतएव बेकनका आशय समझनेमें कठिनाई पड़ती है। फिर, उसके लिखनेकी [ भूमिका ] प्रणाली ऐसी टेढ़ी और विषय विवेचना ऐसी गम्भीर है, कि अंगरेजीका परिमित ज्ञान रखनेवाले हम ऐसोंके लिए, उसके लेखोंका अनुवाद करना साहसका काम है। तथापि, जबतक अंगरेज़ीका पारदर्शी कोई विद्वान् इस कामको योग्यतासे नहीं सम्पादन करता तबतक, अनेक त्रुटियोंके रहते भी, हमने इस अनुवादको सर्व साधारणके सम्मुख उपस्थित करनेमें कोई हानि नहीं समझी।

अंगरेजी शब्दोंके स्थानमें हिन्दी शब्दमात्र न लिखकर, बेकन के भावको हमने मनमाने शब्दोंमें व्यक्त करनेका प्रयत्न किया है। यहां तक कि किसी किसी विषयके नामका भी हमने अक्षरशः भाषान्तर नहीं किया। उदाहरणार्थ:-Of Parents and Children. का अनुवाद "माता पिता और सन्तान" न करके केवल "सन्तान" ही हमने किया है, क्योंकि इस निबन्ध में मुख्यतया सन्तानही का वर्णन है; माता पिता का सम्बन्ध गौणहै। किसी किसी स्थलका अनुवाद, अनुपयोगी समझकर हमने कियाही नहीं। जहां कहीं ऐसा हुआ है वहां हमने * * * एतादृश चिह्न दे दिए हैं। ऐतिहासिक नामोंका (जहांतक हमको पतालगाहै वहांतक) संक्षिप्त विवरण फुटनोटसमें लिखकर, पुस्तकके अन्तमें, हमने ऐसे नामोंका एक सूचीपत्रभी जोड़ दिया है। एक बात हमने औरभी की है वह यह है कि, प्राचीन संस्कृत ग्रन्थोंसे एक एक और कहीं कहीं दो दो श्लोक, प्रत्येक निबन्ध के शिरोभागमें उद्धृत करके, निबन्ध और श्लोकोंकी एक वाक्यता हमने दिखलाई है।

झांसी, महावीरप्रसाद द्विवेदी।
२३ आक्टोवर १८९९ई॰
[ सूची ]

सूची।


नं० निबन्धोंके नाम.
१ सत्य
२ विपत्ति
३ बदलालेना
४ व्यय
५ त्वरा
६ विद्याध्ययन
७ मृत्यु
८ विलम्ब
९ भाषण
१० संशय
११ सन्तान
१२ स्वार्थपरता
१३ शिष्टाचारऔरमान
१४ आरोग्यरक्षा
१५ यौवन और जरा
१६ सौन्दर्य
१७ कुरूपता
१८ प्रशंसा
१९ आत्मश्लाघा
२० कामजन्य प्रेम

पृष्ठ.
...
...
...
...
...१२
...१५
...१८
...२१
...२३
...२६
...२८
...३१
...३४
...३७
...४०
...४३
...४५
...४८
...५०
...५४

नं० निबन्धोंके नाम.
२१ द्रव्य
२२ स्वभाव
२३ रूढ़ि
२४ कार्यसाधन
२५ विवाह और अविवाहित्व
२६ धृष्टता
२७ क्रोध
२८ भाग्योदय
२९ भ्रमात्मक धर्म्मभीरुता
३० दाम्भिक बुद्धिमत्ता
३१ मैत्री
३२ मत्सर
३३ प्रवास
३४ नई प्रथा
३५ निरीश्वरमत
३६ सौजन्य और परोपकार

पृष्ठ.
...५७
...६३
...६६
...६९

...७२
...७६
...७९
...८३

...८६

...८९
...९२
...१०७
...११६
...१२०
...१२३

...१२९

 

इति।

यह कार्य भारत में सार्वजनिक डोमेन है क्योंकि यह भारत में निर्मित हुआ है और इसकी कॉपीराइट की अवधि समाप्त हो चुकी है। भारत के कॉपीराइट अधिनियम, 1957 के अनुसार लेखक की मृत्यु के पश्चात् के वर्ष (अर्थात् वर्ष 2024 के अनुसार, 1 जनवरी 1964 से पूर्व के) से गणना करके साठ वर्ष पूर्ण होने पर सभी दस्तावेज सार्वजनिक प्रभावक्षेत्र में आ जाते हैं।


यह कार्य संयुक्त राज्य अमेरिका में भी सार्वजनिक डोमेन में है क्योंकि यह भारत में 1996 में सार्वजनिक प्रभावक्षेत्र में आया था और संयुक्त राज्य अमेरिका में इसका कोई कॉपीराइट पंजीकरण नहीं है (यह भारत के वर्ष 1928 में बर्न समझौते में शामिल होने और 17 यूएससी 104ए की महत्त्वपूर्ण तिथि जनवरी 1, 1996 का संयुक्त प्रभाव है।