प्रबन्ध-पुष्पाञ्जलि
साहित्य-मणि-माला मणि—११
प्रबन्ध-पुष्पाञ्जलि
आलोचना व निबन्ध
महावीर प्रसाद द्विवेदी
साहित्य-सदन,
चिरगाँव (झाँसी)
१९९२
सर्वोदय साहित्य मन्दिर
प्रथमावृत्ति
मूल्य
चिरगाँव (झाँसी) में मुद्रित, तथा प्रकाशित।
निवेदन
उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव पर आज तक अनेक चढ़ाइयाँ हो चुकीं और इस समय भी हो रही हैं। वे प्रदेश कैसे हैं, वहाँ तक जाने में कैसी कैसी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। वहाँ का दृश्य कैसा है और वहाँ आज तक कौन कौन यात्री कहाँ तक पहुँचा है, यह सब इस संग्रह के तीन लेखों में वर्णन किया गया है। उससे यात्रियों के व्यवसाय, श्रमसहिष्णुता, दृढ़प्रतिज्ञा आदि का ज्ञान होने के सिवा ध्रुव प्रदेशों के कौतुकावह दृश्यों और भीषण कष्टों का भी बहुत कुछ वृत्तान्त ज्ञात हो सकता है। प्रकृति कभी कभी कितने संहारकारी खेल खेलती है, यह बात विस्यूवियस नामक ज्वालागर्भ पर्वत के स्फोटों के वर्णन से अच्छी तरह ध्यान में आ सकती है। सैकड़ों, हज़ारों वर्ष के परिश्रम से मनुष्य जिन नगरों को जन्म देता और नाना प्रकार के शृङ्गारों से उनकी शोभा बढ़ाता है उन्हें प्रकृति देवी घड़ी ही दो घड़ी में समूल नष्ट कर देती है। इस प्रकार मानों वह मनुष्यों को उनकी क्षुद्रता का पाठ पढ़ाने की कृपा करती है। ऐसी घटनाओं से मनुष्य-समुदाय, चाहे तो, बहुत कुछ सीख सकता है।
शिक्षा का विषय जितना ही गहन है, उतना ही उपयोगी और महत्वपूर्ण भी है। अमेरिका और योरुप में इस विषय पर बहुत कुछ ग्रन्थरचना हुई है। हर्बर्ट स्पेन्सर नाम के तत्ववेत्ता ने इस सम्बन्ध में जो कुछ लिखा है, उसके लेख का सारांश इस संग्रह के पहले लेख में दिया गया है। अतएव जिन्हें इस विषय की पुस्तकें पढ़ने के लिए प्राप्त न हों वे इसकी कितनी ही मुख्य मुख्य बातें इस लेख से जान सकते हैं।
मनुष्य-गणना से देश की उन्नति या अनुन्नति का जो ज्ञान प्राप्त हो सकता है, उसका नमूना लेख नंबर २ में देखने को मिलेगा। उससे यह भी मालूम हो जायगा कि, समय समय पर मनुष्य-गणना करना कितने महत्त्व का काम है।
जङ्गली हाथी, इस देश में, अब भी बहुत पाये जाते हैं। अपने प्रान्त की रियासत बलरामपुर के जङ्गलों में भी वे स्वतन्त्रता-पूर्वक घूमा करते हैं। वे किस तरह पकड़े और पाले जाते हैं, इसका वर्णन भी इस संग्रह के एक लेख में पढ़ने को मिलेगा। उससे और कुछ नहीं तो कौतूहल की उद्दीप्ति तो अवश्य ही हो सकती है।
युद्ध के समय, युद्ध लग्न और निरपेक्ष देशों को किन किन नियमों का पालन करना पड़ता है, इसका भी वर्णन इस पुस्तक के एक लेख में पढ़ने को मिलेगा।
दौलतपुर, रायबरेली—— | महावीरप्रसाद द्विवेदी |
३ जून १९२९ |
शिक्षा | १ |
भारतवर्ष की चौथी मनुष्य-गणना | ३६ |
बलरामपुर का खेदा | ४८ |
युद्ध सम्बन्धी अन्तर्जातीय नियम | ६२ |
यमलोक का जीवन | ७६ |
दक्षिणी ध्रुव की यात्रा १ | ९५ |
„ २ | १०१ |
उत्तरी ध्रुव की यात्रा १ | १०९ |
„ २ | ११७ |
विस्यूवियस के विषम स्फोट १ | १२८ |
„ २ | १३७ |
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