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इतना खराब तो नहीं


इस निवेदन के कारण भला, वैर-भाव क्यों पैदा हो? निवेदन के तर्ज में या विचार में वैर-भाव पैदा करनेवाली कोई चीज ही नहीं है। मैंने लड़ाई बंद करने की सलाह नहीं दी। मैंने तो सिर्फ यह सलाह दी है कि लड़ाई को मनुष्य-स्वभाव के योग्य, दैवी तत्व के लायक ऊँचे आधार पर ले जाया जाये। अगर ऊपर लिखे पत्र का छिपा अर्थ यह है कि यह निवेदन निकालकर मैंने नाजियों के हाथ मजबूत किये हैं, तो जरा-सा भी विचार करने पर यह शंका निर्मूल सिद्ध हो जायेगी। अगर ब्रिटेन लड़ाई का यह नया तरीका अख्तियार कर ले, तो हेर हिटलर उससे परेशान हो जायेंगे, पहली ही चोट पर उन्हें पता चल जायेगा कि उनका अस्त्र-शस्त्र का सामान सब निकम्मा हो गया है।

योद्धा के लिए तो युद्ध उसके जीवन का साधन है, भले ही वह युद्ध आत्मचरण के लिए हो या दूसरों पर आक्रमण करने लिए अगर उसे यह पता चल जाता है कि उसकी युद्ध-शक्ति का कुछ भी उपयोग नहीं, तो वह बेचारा निर्जींव-सा हो जाता है।

मेरे निवेदन में एक बुजदिल आदमी एक बहादुर राष्ट्र को अपनी बहादुरी छोड़ने की सलाह नहीं दे रहा है, न एक सुख का साथी एक मुसीबत में आ फँसे अपने मित्र का मजाक ही उड़ा रहा है। मैं पत्र-लेखक को कहूँगा कि इस खुलासे को ध्यान में रखकर फिर से एकबार मेरा वह निवेदन पढें।

हाँ, हेर हिटलर और सब आलोचक एक बात कह सकते हैं। कि मैं एक बेवकूफ आदमी हूँ, जिसको दुनिया का या मनुष्य