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इतना ख़राब तो नहीं!

एक मित्र, एक अग्रेज भाई के पत्र में से निम्नलिखित अंश भेजते हैं:-

“क्या आपको लगता है कि महात्माजी के ‘हरेक अग्रेज के प्रति' निवेदन का एक भी अंग्रेज के दिल पर अच्छा असर हुआ होगा? शायद इस अपील के कारण जितना वैर-भाव बढ़ा है, उतना हाल में किसी दूसरी घटना से नहीं बढ़ा। आजकल हम एक अजीबोगरीब और नाजुक ज़माने में से गुजर रहे हैं। क्या करना चाहिए, यह तय करना बहुत ही कठिन है। कम-से-कम जिस बात में साफ खतरा दिखता हो, उससे तो बचना ही चाहिए। जहाँतक मैं देखता हूँ, महात्माजी की शुद्ध अहिंसा की नीति हिन्दुस्तान को अवश्य ही बर्बादी की तरफ ले जायेगी। मैं नहीं जानता कि वह खुद कहाँतक इसपर चलेंगे। उनमें अपने-आपको अपनी सामग्री के मुताबिक बनाने की अजीब शक्ति है।

"मैं तो जानता हूँ कि एक नहीं, अनेक हृदयों पर मेरे निवेदन का अच्छा असर हुआ है। मैं यह भी जानता हूँ कि कई अंग्रेज