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मुझे पश्चात्ताप नहीं है


की दुनिया के सामने घोषणा की थी, अगर उसे हासिल करना है तो उसे अपनी नीति बिलकुल बदल देनी होगी। मुझे ऐसा लगता है कि मैं जानता हूँ कि क्या परिवर्तन करने की जरुरत है। जिस विषय की यहाँ चर्चा हो रही है उसमें मेरी कार्यसंमिति को न समझा सकने की बात लाना असंगत है। ब्रिटेन और हिन्दुस्तान की परिस्थिति में कोई साम्य ही नहीं है। इसलिए 'मुझे वह निवेदन लिखने पर थोड़ा-सा भी पश्चात्ताप नहीं है। मैं इस बात पर कायम हूँ कि निवेदन लिखने में मैंने ब्रिटेन के एक आजीवन मित्र का काम किया है।

एक लेखक प्रत्युतर में लिखते हैं, “हेर हिटलर को अपना निवेदन भेजो न!” पहली बात तो यह है कि मैंने हेर हिटलर को भी लिखा था। मेरे पत्र भेजने के कुछ समय बाद वह पत्र अखबारों में छपा भी था। दूसरी बात यह है कि हेर हिटलर को मेरा अहिंसक रास्ता अखत्यार करने के लिए कहना कुछ अर्थ नहीं रखता। हेर हिटलर विजय-पर-विजय प्राप्त कर रहे हैं। उनसे तो मैं यही कह सकता हूँ कि अब बस करो। वह मैं कह चुका हूँ। मगर ब्रिटेन आज अपनी रक्षा के लिए लड़ रहा है। उनके हाथ में मैं अहिंसक असहयोग का सचमुच प्रभावकारी शस्त्र रख सकता हूँ। मेरा रास्ता ठुकराना हो, तो उसके गुण-दोषों का विचार करके ठुकराया जाये, अनुचित तुलनायें करके या लूलीलँगड़ी दलीले दे करके नहीं। मैं समझता हूँ कि मैंने जो सवाल उठाया है वह सारे संसार के लिए महत्त्वपूर्ण है। अहिंसक