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युद्ध और अहिंसा


मत हूँ कि ब्रिटिश सरकार का ढंग शोचनीय है। लेकिन इन मित्रों ने हिन्दुस्तान की प्राचादी की कल्पना करके उसके जो नतीजे निकाले है वह सरासर गलत है। वह भूल जाते हैं कि मैं इस चित्र से बाहर हूँ जिनके सिर पर कार्य समिति के पिछले प्रस्ताव कि जिम्मेदारी है, उनकी धारणा यही रही है कि स्वतन्त्र हिन्दुस्तान ब्रिटेन के साथ सहयोग करेगा। उनके पास जर्मनी के आगे झुकने या उसका अहिंसक तरीके से सामना करने का तो कोई प्रश्न ही नही उठता।

मगर, यद्यपि विषय दिलचस्प और ललचानेवाला है तो भी मुझे हिन्दुस्तान की आजादी और उसके फलितार्थों का विचार करने के लिए यहाँ नहीं ठहरना चाहिए।

मेरे सामने इस भाव के पत्र और अखबार की कतरने पड़ी हैं कि जब कांग्रेस ने हिंसक फौज के जरिये हिन्दुस्तान की रक्षा की तैयारी न करने की आपकी सलाह न मानी, तो आप अंग्रेजों को यह सलाह कैसे दे सकते हैं और उनसे कैसे आशा रख सकते हैं कि वे इसे स्वीकार करेंगे? यह दलील देखने में ठीक मालूम देती है, मगर सिर्फ देखने में ही। आलोचक कहते हैं कि जब मैं अपने लोगों को ही न समझा सका, तो मुझे यह आशा रखने का कोई हक नही कि आज जीवन और मौत की लड़ाई के मझधार पड़ा ब्रिटेन मेरी बात सुनेगा। मेरा तो जीवन में एक खास ध्येय है। हिन्दुस्तान की करोड़ों की जनता ने अंग्रेजों की तरह युद्ध के कड़वे स्वाद नहीं चखे। ब्रिटेन ने जिस मकसद