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हमारा कर्तव्य

“नाज़ी जर्मनी द्वारा किये जानेवाले इधर के और भी क्रूरतापूर्ण हमलों का ख़याल रखते हुए और इस वाकये को आँखों के सामने रखते हुए कि ब्रिटेन आज मुसीबत में पड़ गया है और चारों श्रोर आपदाओं से घिरा हुआ है। क्या अहिंसा का यह तक्राज़ा नहीं है कि हम उससे कहदें कि यद्यपि हम अपनी स्थिति से ज़रा भी नहीं हट रहे हैं और जहाँ तक उसके साथ हमारे ताल्लुक़ात और हमारे भविष्य का सम्बन्ध है हम अपनी माँग में तिल भर कमी न करेंगे। फिर भी मुसीबतों से घिरे होने की हालत में उसे तंग या व्यग्र करने की हमारी इच्छा नहीं है। इसलिए फिलहाल सत्याग्रहआन्दोलन के विषय में सारे ख़यालात और सब तरह की बातें हम निश्चित रूप से मुल्तवी कर देते हैं? आज नाज़ीवाद स्पष्टत: जैसे प्रभुत्व के लिए उठ रहा है, क्या हमारा मन उसकी कल्पना के खिलाफ विद्रोह नहीं करता है? क्या मानवीय सभ्यता का सम्पूर्ण भविष्य खतरे में नहीं है? यह ठीक है कि विदेशी शासन से अपने को स्वतन्त्र करना भी हमारे लिए ज़िन्दगी और मौत का ही सवाल