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युद्ध और अहिंसा


था। उनकी भर्ती होने की अनिच्छा का कारण यह था कि उनके दिलों में ब्रिटेन के लिए वैरभाव था। लेकिन ब्रिटेन की हुकूमत को खत्म करने का एक जाग्रत निश्चय धीरे-धीरे इस वैरभाव का स्थान ले रहा था।

तब से हालात बदल चुके हैं। पिछली लड़ाई में हिन्दुस्तान की ओर से सार्वजनिक सहायता मिलने के बावजूद भी, ब्रिटेन की वृत्ति रौलट एक्ट और ऐसे ही रूपों में प्रगट हुई। अंग्रेजरूपी खतरे का मुकाबिला करने के लिए कांग्रेस ने असहयोग को स्वीकार किया। जलियाँवाला बाग, साईमन कमीशन, गोलमेज कान्फ्रेंस और थोड़े-से लोगों की शरारत के लिए बंगाल को कुचलना, यह सब बातें उसकी यादगार हैं।

जबकि कांग्रेस ने अहिंसा की नीति को स्वीकार कर लिया है, मेरे लिए आवश्यक नहीं कि मैं भर्ती के लिए लोगों के पास जाऊँ। कांग्रेस के जरिये मैं थोड़े से रंगरूटों की अपेक्ष बहुत ही बेहतर सहायता दे सकता हूँ। लेकिन यह जाहिर है कि ब्रिटेन को उसकी जरूरत नहीं है। मैं तो चाहता हूँ पर लाचार हूँ।

'हरिजन-सेवक' : ४ मई, १६४०