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युद्ध और अहिंसा


माली सहायता तो उसका एक छोटा-सा रूप था। इन दोनों मुल्कों के लिए जो अपनी आज़ादी रातोंरात खो बैठे, शायद ही कोई हिन्दुस्तानी हो जिसे उतनी हमदर्दी न हो। यधपि स्पेन और चीन से उनका मामला जुदा है। उनका नाश चीन और स्पेन के मुकाबिले में शायद ज्यादा मुकम्मिल है। दरअसल तो चीन और स्पेन के मामले में भी खास फर्क है लेकिन जहाँतक हमदर्दी का सवाल है उनमें कोई अन्तर नहीं आता है। बेचारे हिन्दुस्तान के पास इन मुल्कों को भेजने के लिए सिवा अहिंसा के और कुछ नहीं है। लेकिन जैसा कि मैं कह चुका हूँ, यह अभी तक भेजने के लायक चीज़ नहीं हुई है; वह ऐसी तब होगी, जब कि हिन्दुस्तान अहिंसा के ज़रिये आज्ञादी हासिल कर लेगा।

अब रहा ब्रिटेन का मसला। कांग्रेस ने उसे कोई परेशानी में नहीं डाला है। मैं यह घोषित कर चुका हूँ कि मैं कोई ऐसा काम नहीं करूँगा जिससे उसे कोई परेशानी हो। अंग्रेज परेशान होंगे, अगर हिन्दुस्तान में अराजकता होगी। कांग्रेस जबतक मेरी बात मानेगी तबतक इसका समर्थन नहीं करेगी।

कांग्रेस जी नहीं कर सकती वह यह है कि अपना नैतिक प्रभाव ब्रिटेन के पक्ष में नहीं डाल सकती। नैतिक प्रभाव मशीन की तरह कभी नहीं दिया जा सकता। उसे लेना न लेना ब्रिटेन के ऊपर निर्भर करता है। शायद ब्रिटेन के राजनेता सोचते हैं कि ऐसा कौन नैतिक बल है जो कांग्रेस दे सकती है।

उनको नैतिक बल की दरकार ही नहीं। शायद वह यह भी