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युद्ध और अहिंसा


ज़ोर जातियों की जी परिणाम भोगने पड़ेंगे उनकी ज़िम्मेवारी से हम न बच सकेंके, हालाँकि यह सच है केि लड़ाई की परिस्थिति पैदा करने में हमारा कुछ भी हाथ नहीं है।

“आज मैंने ‘न्यूज़ क्रानिकल' को भेजा हुआ आपका वक्तव्य देखा। आपने मुद्दे कितने बढ़िया ढंग से निकाले हैं और इन मुद्दों को पश्चिमवालों के सामने हर बक्त रखना कितना ज़रूरी है! फिर भी मुझे लगता है कि आनेवाले समय का तकाज़ा और भी कुछ है वह यह है कि अंग्रेज़ जबतक हमारी उचित माँगों को मान न लें, तबतक हम इस नाजुक मौके पर हाथ-पर-हाथ धरे न बैठे रहें। संम्भव है, लड़ाई के नतीजे का दारोमदार इसी पर हो कि यह देश अन्त में नहीं बल्कि इस समय वया रास्ता पकड़ता है।

“मुझे जर्मनों से ज़रा भी घृणा नहीं है। उरुटे, मुझे उनके साथ गहरी सहानुभूति है। मुझे लगता है कि उनके और वैसे ही दूसरे जिन राष्ट्रों के पास साम्राज्य नहीं है उनके साथ बड़ा अन्याय हो रहा है और जिन राष्ट्रों के पास साम्राज्य हैं उनका वश चले ती वे इस अन्याय को सदा के लिए बनाये रखें। मगर मुझे नाजियों के मौजूदा दृष्टिकोण से ज़रूर नफरत और अन्देशा है, और वह खास तौर पर इसलिए कि जिन्हें वे 'नीची नसल' समझते हैं इनके साथ उनका व्यवहार बहुत बुरा होगा। मुझे रूस की भी इस बात से बड़ी घृणा है कि वहाँ 'अबांछ्नीय लोगों की छटनी' बहुत बेदर्दी के साथ की जाती है और आज़ादी के साथ विचार और प्रलोचना करने का ख़ानगी हक़ छीना जाता है फिर