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युद्ध और अहिंसा


मुझे युद्ध के बारे में आपका रवैया समझने में मदद मिलती है। फिर भी मेरे मन पर चिन्ता का भार है। मैं वही आपके सामने रखना चाहता हूँ।

आज-कल बहुत-से पक्के शान्ति-प्रेमियों का भी यह हाल है कि जब कभी उनके देशों की स्वतन्त्रता बुरी तरह छीनी जाती है तो वे खुद भले ही युद्ध से अलग रहें, मगर वे समझते हैं कि खोई हुई आज़ादी को वापस लेने के लिए लड़ना आनिवार्य ही नहीं, उचित भी है। क्या ऐसे वक्त में आप जैसे आध्यात्मिक नेता और ईश्वरीय दूत का यह फर्ज़ नहीं है कि आगे बढ़कर युद्ध न पागलपने के बजाय कोई दूसरा ऐसा रास्ता सुझायें जिससे आपस के भगड़े तो दूर हो ही सकें, बुराई का मुकाबिला और राजनीतिक उद्दश्यों की पूर्ति भी हो सके? मेरी समज में नहीं आया कि जिस उत्तम मार्ग के आप अगुआ हैं उसकी संसार के आगे घोषणा न करके आप युद्ध से पैदा हुई स्थिति से भारत की स्वतन्त्रता के हक में लाभ उठाने की छोटी-सी बात क्यों सोच रहे हैं! मुझे लगता है कि शायद मैं आपको समझने में गलती कर रहा हूँ। मैॱ चाहता हूँ कि परमात्मा आपके देश की शुभाशायें पूरी करे, मगर यह साम्राज्यवादी ब्रिटेन को हिंसात्मक युद्ध में मदद देकर किसी सौदे की तरह पूरी न हों, बल्कि एक नया और पहले से अच्छा जगत् निर्माण करने की योजना के सिलसिले में होनी चाहिएँ।

युद्ध की पीड़ा और निराशा से विदीर्ण होकर मेरा हृदय आप