यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२५
भारत का रुख


के सारे सवाल के आसपस केन्द्रित है, और हिटलर तथा मुसोलिनी संसार को इसकी याद दिलाते कभी नहीं थकते। इंग्लैड ने साम्राज्य के खतरे में होने की जो आवाज उठायी है उसका भी वस्तुत: यही कारण है। इसलिए इस सवाल से हम सभी का घनिष्ठ सम्बन्ध है।

“हम, जैसी हालत है उसके वैसी ही बनी रहने के खिलाफ हैं। हम उसके खिलाफ लड़ रहे है, क्योंकि हम उसमें तब्दीली चाहते हैं। लेकिन युद्ध हमारा विकल्प नहीं है, क्योंकि हम यह अच्छ़ी तरह जानते हैं कि उससे समस्या वास्तविक रूप में हल नहीं होगी। हमारे पास दूसरा विकल्प ज़रूर है और वही इस भयंकर गड़बड़ी का एक मात्र हल और भविष्य की विश्व-शांति की कुब्जी है। उसी को मैं दुनिया के सामने पेश करना चाहती हूँ। आज वह अरण्य-रोदन के समान मालूम पड़ सकता है, मगर हम जानते हैं कि वही ऐसी आवाज है जो अन्त में कायम रहेगी और जो हाथ आज इन कवच-धारी भुजाओं के सामने बहुत कमजोर मालूम पड़ते हैं, वे ही अन्त में विध्वस्त मानवता का नवनिर्माण करेंगे।

“उस आवाज को व्यक्त करने के लिए आप सबसे उपयुक्त हैं। संसार के उपनिवेशों में, मैं समझती हूँ कि भारत का आज एक खास स्थान है। इसकी नैतिक प्रातान्य भी है और इसमें संगठन-सम्बन्धी शक्ति भी है जो बहुत ओद उपनिवेशों में होगी। दूसरे अनेक बातों में लोग इनकी ओर पथप्रदर्शन के आये निहारते हैं।